बच्चों को दंड: सही या गलत

शिक्षकों  और  माता  पिता  द्वारा  किशोरों  या  बच्चों  के  व्यवहार  की  कठिनाइयों  के  बारे  में  शिकायत  करना  बहुत  ही  आम  बात  है  इस  तरह  की  शिकायतों  में  गुस्सा , आक्रोश , अनुशासनहीनता , आक्रामकता,  सामाजिक अनुकूलन  में  कमी  आदि  हो  सकते  हैं  अगर  इसे  सही  तरीके  से  निपटा  नहीं  जाए  तो  इससे  न  केवल  अभिभावक बच्चे  के  रिश्तो  पर  असर  पड़  सकता  है  और  अपूरणीय क्षति  हो  सकती  है , बल्कि  बच्चे  या  किशोर  के  भविष्य  पर  भी  प्रतिकूल  असर  पड़  सकता  है ।  बच्चों  या  किशोरावस्था के  व्यवहार  से  निपटने  के  लिए  कुछ  उपाय  हैं  जिन्हें  माता- पिता  को  जरूर  ध्यान  में  रखना  चाहिए –                                                 मारपीट  से  बचें –  शारीरिक  दंड  या  बच्चे  को मारना  ,  पिटाई  उससे  बचने  की  जरूरत  है  ऐसे व्यवहार  बच्चों  में  डर  पैदा  करते  हैं  और  उनकी  चिंता  बढ़  सकती  है  वास्तव  में  दंड  की  ऐसी  कार्यवाही आमतौर  पर  बच्चों  में  कार्य  करने  के  लिए  आंतरिक  प्रेरणा  का  निर्माण  नहीं  कर  सकती  है  जिससे  कोई  भी  स्थाई  बदलाव  नहीं  आ  सकता  है ।                                      अवांछनीय  व्यवहार  को  नजरअंदाज  ना  करें – आपको  अपने  किशोरों  के  किसी  भी  अनुचित  या  अवांछनीय  व्यवहार  को  नजरअंदाज  नहीं  करना  चाहिए  माता – पिता  को हर  बार  उस  पर  ध्यान  देने  और  बताने  की  जरूरत  है  जब  भी  वह  व्यवहार  अनुबंध  का  उल्लंघन  करें और  बच्चों  से  वांछित  परिणाम  की  उम्मीद  करनी  चाहिए  जब  भी  आपका  बच्चा  गलती  करे  उसी  समय  आप  बहुत  कठोर  ना  बने , निरंतर  एक  जैसा  व्यवहार  रखें  और  दृढ़  बने  ताकि  बच्चे  आपकी  बात  को  बिना  सोचे  विचारे  याद  रख  सके  और  उससे  सीख  सकें ।                                            सही – गलत  का  भेद  बताए – प्रतिरोध  को  ही  सब  कुछ  ना  बनाएं  और  केवल  उसी  चीजों  को  चुनें  जिसे  आप  उसके  लिए  बहुत  जरूरी  समझते  हो  याद  रखें  कि  माता  पिता  के  रूप  में  आपको  सही  समय  पर  राय  देने  में  सक्षम  होना  बहुत  महत्वपूर्ण  है  बच्चों  को  यह  जानने  की  जरूरत  है  कि  जीवन  हमेशा  अपनी  इच्छा  से  नहीं  चलता  है  और  हम  सभी  को  समय  पर  समझौता  करने  के  लिए  तैयार  रहना  चाहिए ।              सहभागी  दृष्टिकोण  अपनाएं – अपनी  प्रतिक्रिया  या  निर्देश  देने  के  अलावा  अपने  बच्चे  से  यह  भी  जाने  कि  उसने  इस  तरह  का  व्यवहार  क्यों  किया  और  फिर  अपनी  असहमति  के  बारे  में  बताएं  इससे  बच्चों  को  आपके  परिपेक्ष  में  समझने  में  मदद  मिलेगी  साथ  ही  उनमें  बेहतर  तार्किक  निर्णय  लेने  का  कौशल  विकसित  करने  में  मदद  मिलेगी  इसके  अलावा  उन्हें  निर्णय  लेने  की  प्रक्रिया  में  शामिल  करें  जिससे  ना  केवल  उन  में  स्वीकृति  और  जिम्मेदारी  की  भावना  आएगी  बल्कि  उन  फैसलों  को  लागू  करने  और  उन्हें  पूरा  करने  के  लिए  उन्हें  ज्यादा  प्रतिबद्ध  बनाएगा ।                       प्रोत्साहन  का  इस्तेमाल  करें – बच्चों  या  किशोरों  में  व्यवहार  की  कठिनाइयों  का  प्रबंधन  करने  के  लिए  प्रोत्साहन  के  सिद्धांत  का  इस्तेमाल  जरूर  करना  चाहिए , दंड  से  बचें  और  नकारात्मक  प्रोत्साहन  के  बजाय  सुखद  और  विवाद  को  दूर  करें  व्यवहार अनुबंध  करें  और  उन्हें  समय , लोगों  और  परिस्थितियों  में  समान  रूप  से  लागू  करें ।              खुद  को  उदाहरण  के  तौर  पर  पेश  करें  – युवा  मन  को  अपने  आसपास  की  चीजों  को  देखने  या  सुनने  की  इच्छा  बहुत  जल्दी – जल्दी  पड़ती  है  यदि  आप  समस्या  को  सहजता  से  निपटाते  हैं  तो  ऐसा  कोई  तरीका  नहीं  है  कि  आपका  बच्चा  समस्या  से  प्रभावी  तरीके  से   निपटना  सीख  सके | पति – पत्नी  हो  या  बड़े  या  कर्मचारी  सभी  के  साथ  आपको  उचित  व्यवहार  करने  की  जरूरत है  ताकि  आपके  बच्चे  आपको  उदाहरण  के  तौर  पर  देख  सकें ।

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