हमारे बच्चे ही हमारा भविष्य हैं

 बच्चे  हमारी  भविष्य  निधि  हैं । बच्चों  का  बचपन  तो  माता-पिता  के  संरक्षण  में  ही  बीतना  चाहिए , जैसे  एक  माली  बीज  बोता  है  उसके  लिए  खाद , मिट्टी , धूप , हवा , पानी  की  व्यवस्था  करता  है  पौधे  को  सीधा  खड़ा  रखने  के  प्रारंभिक  प्रयासों  में  सहारा  देना  पड़ता  है |  इसी  प्रकार  बच्चों  के  लालन – पालन  में  भी  ध्यान  रखने की  आवश्यकता  है  उनके  कोमल  मन  को  भी  सही  दिशा  बचपन  में  ही  मिलनी  चाहिए  आज  हम  लाचार  अधिक  हो  रहे  हैं  क्योंकि  चारों  ओर  उद्देश्यहीन  शिक्षा  भ्रष्टाचार  को  बढ़ावा  दे  रही  है | हम  ही  बच्चों  को  भ्रष्टाचार  के  विरुद्ध  आवाज  उठाने  को  कहते  हैं  परंतु  कहीं  ना  कहीं  हम  ही  भ्रष्टाचार  की  जड़  में  बैठे  हैं  उसे  हम  किस  पथ  का  पथिक  बनाते  हैं  यह  विचारणीय  है ।                                                                                       जीवन  की  सच्चाईयों  से  हमें  बच्चों  को  अवगत  कराना  होगा  जो  बच्चों  को  पसंद  है  वह  नहीं  अपितु  जो  उनके  पास  है  उसमें  प्रसन्न  रहना  सिखाना  होगा | आज  भौतिकवाद  के  युग  में  हम  बच्चों  को  अंधी  दौड़  में  शामिल  करा  कर  भ्रमित कर  रहे  हैं  बदलते  परिवेश  में  आज  का  युवा  भटक  रहा  है  उसकी  अतृप्त  इच्छाएं  भयंकर  रूप  लेकर तांडव  कर  रही  हैं  युवा  उस  में  फँस  कर  रह  गया  है | इस  परिस्थिति  में  माता – पिता  का  कर्तव्य  है  कि  उसे  बुद्धि  विवेक  का  ज्ञान  कराएं  उचित – अनुचित  का  अंतर  बताएं  साथ  ही  बच्चों  में  धैर्य , साहस  व  शौर्य  जगाना  होगा  उनमें  विश्वास , समर्पण , पवित्रता  की  भावनाएं  पैदा  करनी  होंगी  ताकि  वे  रिश्तो  में  सहजता  और  अंतरंगता  ला  सके |  जहां  बचपन  में  बच्चों  को  संस्कार  दिए  जाते  हैं  वही  युवावस्था  में  विचार  देने  की  आवश्यकता  होती  है | अनेक  महापुरुषों  को  बाल्यकाल  युवावस्था  से  ही  संस्कार  आचार  विचार  उनके  माता – पिता  से  मिले , महान  पुरुषों  की  सफलता  का  राज  उनकी  संयमित  और  नियंत्रित  जीवनचर्या  ही  रही  है ।                                        आज  के  बच्चे  उद्देश्यहीन  शिक्षा  से अभिशप्त  हैं  वह  लक्ष्य  विहीन  शिक्षा  ग्रहण  कर  रहे  हैं  वह  शिक्षा  भी  किस  काम  की  जो  बच्चों  को  भ्रमित  करे  शारीरिक , मानसिक  विकृतियां  पैदा  करें | भारतीय  संस्कृति  में  बाल्यावस्था  से  ही  अपने  बड़ों  का आदर सम्मान  करने  का  अंकुर  डाला  जाता  रहा  है  परंतु  आज  पश्चिमी  सभ्यता  की  देन  है  जिसने  हमारे  बच्चों  को  विचलित  कर  दिया  है |  इलेक्ट्रॉनिक  युग  में  बच्चे  बाहरी  परिवेश  से  प्रभावित  हो  रहे  हैं  घर परिवार  से  औपचारिक  हो  गए  हैं  भारतीय  संस्कृति  दुनिया  में  सर्वाधिक  समृद्धि  संपन्न  है  तो  फिर  हम  पाश्चात्य  सभ्यता  संस्कृति  का  अनुसरण  क्यों  कर  रहे  हैं , हमें  बच्चों  को  अनुशासित  जीवन  जीने  की , सत्यमेव  जयते  का  ध्वज  लहराने  की  प्रेरणा  देनी  होगी ।                                                                                              बच्चे  हमारे  देश  के  कर्णधार  हैं  भावी  नागरिक  हैं  असीमित  शक्ति  के  भंडार  हैं  उन्हें  सुमार्ग  का  पथिक  बनाना  होगा  देशभक्त  बनाना  होगा  अध्यापक  के  पद  पर  महान  संत  आचार्य  बनाना  होगा  ऐसे  नेता  बने  कि  हम  गर्व  से  कह  सकें  कि  हमारे  बच्चे  ही  हमारा  भविष्य  हैं  गांधी  जी  व  नेहरू  जी  के  प्यारे  बच्चे  इस  देश  के  झंडे  को  और  ऊंचा  उठा  सकें  और   सद्भावना  के  प्रेरक  भी  बने ।                                                             

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