घरेलू हिंसा – इसका एक पक्ष यह भी

आमतौर  पर  माना  जाता  है  कि  सास  अपनी  बहू  को  प्रताड़ित  करती  हैं  या  उन  पर  तरह- तरह  के  जुल्म  करती  है  लेकिन  यह  सिक्के  का  एक  पक्ष  है  दूसरा  पक्ष  यह  भी  है  कि  सास  भी  प्रताड़ित  हैं  अपनी  बहुओं  से ,  अब  यह  बात  अलग  है  कि  प्रताड़ना  के  बावजूद  वे  उफ  तक  नहीं  कहती  अन्यथा  बहू  उन्हें  वृद्ध  आश्रम  का  रास्ता  न  दिखा  दे ।                                                                            सदियों  से  सास  के  बारे  में  प्रचलित  है  कि उनमें  दया , ममता , प्रेम  नाम  की  कोई  चीज  नहीं  होती  सच  तो  यह  है  कि  वे  मुफ्त  में  ही  बदनाम  है  आमतौर  पर  कोई  सास  अपनी  बहू  के  साथ  बुरा  व्यवहार  नहीं  करती । अभी  तो  आज  स्थिति  इससे  उलट  है , बहू  को  सास  की आवश्यकता  तभी  तक  है  जब  तक  कि  छोटे  बच्चे  हैं  ताकि  उन्हें  रख  सके  बच्चों  के  बड़े  हो  जाने  पर  या   सास  के  बूढ़ी  हो  जाने  पर  उनकी  आवश्यकता  नहीं  रहती , यहीं  से  शुरू  होती  है  सास  की  उपेक्षा  होना ।                                                                    सर्वेक्षण  की  रिपोर्ट  कहती  है  कि बुजुर्ग  महिलाएं  परिवार  की  सबसे  अवांछित  सदस्य  मानी  जाती  हैं  जिनकी  परिवार  में  हैसियत  खत्म  होती  जा  रही  है  वह  लगातार  प्रताड़ना  की  शिकार  हो  रही  हैं  और  इसके  पीछे  एक  बड़ा  कारण  यह  है  कि  ज्यादातर  अशिक्षित  या  कम  शिक्षित  हैं ।                      ऑल  इंडिया  मदर  इन  लॉ  प्रोटेक्शन  फोरम  के  बैनर  तले  बहुओं  की  हिंसा  और  यातना  से  बचाने  और  संपत्ति  के  अधिकार  जैसी  मांगों  को  लेकर  एक  संगठन  बनाया  है  इनकी  सदस्यों  में  फॉरेंसिक  एक्सपर्ट, वकील , डॉक्टर,  प्रोफेसर  ,प्रोफेशनल  और  घरेलू  महिलाएं  शामिल  हैं  इस  संगठन  का  अगला  कदम  दहेज  उन्मूलन  और  घरेलू  हिंसा  में  बदलाव  पर  जोर  देने  का  होगा  इस  बारे  में  संगठन  ने  राष्ट्रीय  महिला  आयोग  व  पुलिस  को  पत्र  लिखकर  बहुओं  के  खिलाफ  सासों  की  शिकायत  को  दर्ज  करने  का  आग्रह  किया  है , संगठन  इन  मुद्दों  पर 

न्यायपालिका  के  रूप  में  भी  परिवर्तन  चाहता  है  अब  इन  आंकड़ों  से  साबित  हो  चुका  है  कि  सासों  को  बेवजह  बदनाम  किया  जाता  है  असल  जिंदगी  में  वही  पीड़ित  हैं  जो  सब  कुछ  सहन  करती  हैं , भारत  में   बुजुर्ग  महिलाएं  अपने  ही  घरों  में  सताई  जा  रही  हैं  इन्हें  सताने  के  मामले  में  23  फ़ीसदी  बहुएं  जिम्मेदार  हैं ।  55  फ़ीसदी  बुजुर्ग  अपने  ऊपर  होने  वाले  अत्याचार  की  शिकायत  किसी  से  नहीं  करती  शायद  ऐसा  वे  अपनी  इज्जत  को  बचाए  रखने  के  लिए  करती  हैं ।                                                                                            बुढ़ापे  की  मूलभूत  आवश्यकताएं  –  बुढ़ापे  में  भी  कुछ  मूलभूत  आवश्यकताएं  बनी  रहती  हैं  जिन्हें  नजरअंदाज  नहीं  किया  जा  सकता,  वृद्धावस्था  में  शरीर  थक  चुका  होता  है  और  अनेक  बीमारियां  घर  कर  जाती  हैं  परंतु  जब  उन्हें  सहारे  की  जरूरत  होती  है  तभी  उन्हें  नजर  अंदाज किया  जाता  है ।                                                                वृद्धावस्था  में  हुई  विधवा  सास  की  हालत  तो काफी  बदतर  हो  जाती  है  जैसे  तैसे  वह  अपनी  जिंदगी  के बाकी  बचे  हुए  दिन  काटती  है  क्योंकि  उसका  सुख – दुख  जानने  वाला  कोई  नहीं  होता  बहू , पति  और  बच्चों  में  ही  व्यस्त  रहती  हैं  ।                                                                                            आज  नई  पीढ़ी  के  नैतिक  मूल्य  इतने  गिर  गए  हैं  कि बुजुर्ग  भी  बोझ  लगने  लगे  हैं  सबसे  बड़ी  विडंबना  तो  यह  है  कि  यह  सब  बेटों  की  आंखों  के  सामने  होता  है।  अपनी बुजुर्ग  मां  का  साथ  देने  की  बजाय  पत्नी  के  गुलाम  बन  जाते  हैं  और  उनकी  हां  में  हां  मिलाते  हैं ।

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