सामाजिक रूढ़ियां – सांवला रंग
दुनिया भर में स्त्रियों के लिए सुंदरता के कुछ मापदंड निर्धारित हैं इन्हीं के आधार पर किसी को अधिक या कम सुंदर माना जाता है त्वचा की रंगत ऐसा ही एक पैमाना है इसमें गोरे रंग को प्रमुखता हासिल है । विकास पथ की अंधी दौड़ में भागते अपने देश का यह कड़वा सच है यहां ना जाने कितनी लड़कियों को अपनी सांवली रंगत की वजह से तिरस्कृत होना पड़ता है । लड़कियों के साथ होने वाले इस भेदभाव के कारण “विमेन ऑफ बर्थ ” संगठन की निदेशक और संस्थापक कविता मैन्युअल ने वर्ष 2009 में डार्क इज ब्यूटीफुल अभियान चलाया था इस अभियान से जुड़ी सुनीता सैमुअल कहती हैं कि गहरे रंग की त्वचा सुंदर नहीं होती , समाज में यह बात बहुत गहराई तक बैठी हुई है भारत में इसकी जड़े कहीं ना कहीं इसके इतिहास और संस्कृति में धंसी हुई है ।
बेचारी साँवली है लेकिन नैन नक्श अच्छे हैं ऐसी बातों के बाद मन में भी वैसे ही विचार पनप जाते हैं कि शायद मैं सुंदर नहीं हूं , बस गोरी नहीं है अगर गोरी होती तो मिलियन डॉलर का ऑफर आता , कौन ऐसी काली लड़की से शादी करेगा इसके लिए तो अच्छा लड़का ढूंढना मुश्किल हो जाएगा , इस तरह की बातें हमें समाज में अक्सर सुनने में आ जाती है । समाज की इसी सोच ने लड़कियों को अपनी सांवली रंगत पर सोचने को मजबूर कर दिया है वास्तव में रंगभेद का आईना हमें इस समाज में उस शख्स से रूबरू करवाता है जहां सभी जगहों पर गोरी बहुओं की तलाश जारी है , रविवार के अखबार में प्रकाशित होने वाले वैवाहिक विज्ञापनों की भाषा आज भी बदली नहीं है यहां खुले शब्दों में लिखा होता है कि लड़के के लिए गोरी सुंदर कन्या चाहिए क्योंकि आज भी भारतीय समाज की पहचान एक पितृसत्तात्मक समाज के तौर पर होती है और यहां लड़कियों को घर संभालने का साधन मात्र समझा जाता है , इन विज्ञापनों को देखकर यह साफ जाहिर होता है कि अपने बेटे के लिए हम जिस लक्ष्मी का चुनाव कर रहे हैं उसमें घर चलाने के गुण भले ही ना हो पर उस की रंगत गोरी जरूर होनी चाहिए । अब वक्त आ गया है इस सोच को बदलने का फेयरनेस क्रीम्स वाली सोच से बहुत आगे निकल आई है लड़कियां और वे अपने स्किन टोन पर नाज करते हैं वे प्रकृति प्रदत्त सुंदरता को स्वीकार करने का दम रखते हैं काला या गोरा महज एक रंग ही है जब काला रंग फैशन में छा सकता है तो चेहरे पर इसका होना लोगों को स्वीकार क्यों नहीं है किसी व्यक्ति की पहचान उसके रंग से नहीं उसके व्यक्तित्व और उपलब्धियों से होती है । ओफ्रा विनफ्रे और मिशेल ओबामा जैसे ना जाने कितने नाम हमारे सामने हैं जिन्होंने अपने रंग को कभी अपनी सफलता की राह में रोड़ा नहीं बनने दिया यही बस समझने की जरूरत है ।
सच में समाज को अब अपनी रूढ़िवादी सोच से बाहर आने की जरूरत है. बहुत अच्छा लिखा प्रतिभा आपने 👏👏