थायराइड और योग

थायराइड  मनुष्य  के  गले  में  स्थित  तितली  जैसी  आकृति  वाली  एक  अंतः  स्रावी  ग्रंथि  है  जो  शरीर  में  हार्मोन  बनाने  का  काम  करती  है  यह  ग्रंथि  अच्छी  तरह  से  काम  ना  करें  या  अधिक  हार्मोन  का  स्राव  करने  लगे  तो इसे  ही  थायराइड  रोग  कहा  जाता  है  इसके  कई  कारण  हो  सकते  हैं –                                                                                           आज  ज्यादातर  लोग  तनाव  भरा  जीवन  जीने  को  मजबूर  हैं  जब  तनाव  का  स्तर  बढ़  जाता  है और  नियंत्रण  से  बाहर  हो  जाता  है  तो  थायराइड  रोग  की  आशंका  बढ़  जाती  है  थायराइड  रोग  का  एक  अन्य  कारण  विटामिन  डी  और  आयोडीन  की  कमी  भी  है  थायराइड  रोग  दो  प्रकार  का  होता  है –           १ – थायराइड  का  बढ़ना  जिसे  अंग्रेजी  में  हाइपर  थायराइडडिस्म  कहा  जाता  है  इसमें  थायराइड  ग्रंथि  हार्मोन  का  स्राव  ज्यादा  करने  लगती  है ।                                                           २ – थायराइड  का  सिकुड़ना  जिसे  अंग्रेजी  में  हाइपोथायरायडिज्म  कहा  जाता  है  इसमें  थायराइड  ग्रंथि  हार्मोन  का  स्राव  कम  करने  लगती  है ।                                             वजन  कम  होना , हाई  ब्लड  प्रेशर , उंगलियों  में  कपकपी , जल्दी  घबराना , कमजोरी , गर्मी  सहन  ना  होना , अधिक  पसीना  आना , हृदय  की  धड़कन  बढ़ना , बार – बार  मूत्र  त्याग , थकावट , यादाश्त  कमजोर  होना , अधिक  भूख  लगना , बालों  का  झड़ना  आदि  थायराइड  बढ़ने  के  लक्षण  है  वजन  बढ़ना , सर्दी  सहन  ना  होना , कब्ज  , बाल  रूखे  होना , कमर  दर्द , जोड़ों  में  अकड़न , नब्ज  की  गति  धीमी  होना , चेहरे  और  शरीर  पर  सूजन  आदि  लक्षण  थायराइड  के  सिकुड़ने  के  सूचक  हैं ।                                                  रोग  की  पुष्टि  के  लिए  रक्त  की  थायराइड  जांच  करानी  आवश्यक  है  इस  जांच  से  थायराइड  के  तीनों  हारमोंस  की  मात्रा  का  आकलन  हो  जाता  है  जिससे  यह  पता  चलता  है  कि  रक्त  में  हार्मोन  की  मात्रा  कितनी  है  थायराइड  रोग  के  इलाज  के  लिए  शरीर  में  विटामिन  डी  और  आयोडीन  की  ठीक  मात्रा  में  आपूर्ति  जरूरी  है  इसके  लिए  सूर्य  की  सुबह  की  धूप  का  सेवन  करना  चाहिए  और  पानी  में  उत्पन्न  होने  वाले  पदार्थों  जैसे  मखाना,  कमल  ककड़ी , सिंघाड़ा , आयोडीन  युक्त  नमक  आदि  का  यथोचित  प्रयोग  करना  चाहिए  भोजन  में  प्रचुर  मात्रा  में  फल , अंकुरित  अन्न  को  शामिल  करना  चाहिए  भोजन  में  कम  से  कम  एक  बार  फलों  का  ही  सेवन  करना  लाभप्रद  होगा  जूस , नारियल  पानी , नींबू  पानी  का  प्रचुर  मात्रा  में  सेवन  करना  चाहिए  लेकिन  ध्यान  रहे  शाम  में  छाछ  का  सेवन  नहीं  करना  चाहिए  और  छाछ  में  जीरा , पुदीना , काला  नमक , थोड़ी  सी  सोंठ , हींग  आदि  अवश्य  डालनी  चाहिए , तिल  का  सेवन  भी  लाभप्रद  होगा ।                                                                                                     वर्तमान  में  थायराइड  जैसे  रोग  से  सुरक्षित  और  स्वस्थ  रहने   के  लिए  अपनी  एक  सुनिश्चित  कार्यशैली  बनानी  आवश्यक  है  बस  व्यस्त  तो  रहे  पर  अस्त  व्यस्त  नहीं , अस्त – व्यस्त  रहने  का  अर्थ  है  दो  या  दो  से  अधिक  काम  एक  साथ  करना  या  फिर  वर्तमान  और  भविष्य  दोनों  में  एक  साथ  रहना  इससे  मस्तिष्क  पर  दबाव  पड़कर  तनाव  बढ़ता  है  जो  भी  कार्य  करें  उसे  बोझ  समझ  कर  ना  करें  बल्कि  मन  लगाकर  सरलता  से  करें  तथा  काम  करने  के  बीच  में  यदि  थकावट  महसूस  हो  या  मन  ना  लग  रहा  हो  तो थोड़ा  आराम  करें  और  कुछ  लंबी – लंबी  गहरी  सांस  लें , स्थिति  चाहे  अनुकूल  हो  या  प्रतिकूल  हमेशा  सम  रहने  का  प्रयास  करें । थायराइड  ग्रंथि  पर  सकारात्मक  प्रभाव  डालने  वाली  कुछ  प्रभावी  योगिक  क्रियाएं  इस  प्रकार  हैं –       आसन –  मत्स्यासन , सुप्तवज्रासन , पवनमुक्तासन , सर्वांगासन , हलासन , सिंहासन , यह  कुछ  प्रमुख  आसन  है  जो  कि  थायराइड  में  बहुत  लाभदायक  सिद्ध  होते  हैं ।                            प्राणायाम  और  बंध – उज्जाई  प्राणायाम , भ्रामरी  प्राणायाम , जालंधर  बंध , यह  सभी  भी  थायराइड  की  समस्या  को  दूर  करने  में  बहुत  सहायक  सिद्ध  होते  हैं ।                                 योग  निद्रा – दरी , कंबल  आदि  बिछाकर  आंखें  बंद  करके  लेट  जाएं  इसके  बाद  स्वास   पर  अपना  ध्यान  केंद्रित  करें  सिर्फ  सांसों  का  अवलोकन  करते  रहे  फिर  स्वासों  को  धीरे – धीरे  लंबा  व  गहरा  करने  का  प्रयास  करें  पूरे  शरीर  को  शिथिल  करें  इसके  बाद  अपने  मस्तिष्क  पर  ध्यान  केंद्रित  कर  के  अंदर  यह  भावनाएं , कि  मैं  ठीक  हो  रहा  हूं  या  ठीक  हो  रही  हूं  मेरी  पिट्यूटरी  ग्रंथि  से  हार्मोन  का  स्राव  सही  मात्रा  में  हो  रहा  है  15  से  20  बार  अभ्यास  करें  इसके  बाद  तीन  गहरी  और  लंबी  सांस  लेकर  धीरे – धीरे  आंखें  बंद  करते  हुए  ही  बैठ  जाएं  अब  तीन  बार  ओम  का  उच्चारण  दीर्घ  अवधि  में  स्वर  में  करें , ओम  का  उच्चारण  करने  के  लिए  स्वास  को  पूरी  तरह  से  भरें  फिर  धीरे – धीरे  श्वास  को  छोड़ते  हुए  तीन  चौथाई  स्वास  का  उच्चारण  तथा  अंत  में  एक  चौथाई  स्वास  होठों  को  मिलाते  हुए  म  का  उच्चारण  करें  ऐसा  करने  से  तुरंत  शांति  प्राप्त  होती  है  तथा  सकारात्मक  ऊर्जा  का  प्रवाह  होता  है  मस्तिष्क  स्वस्थ  होता  है ।

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