आत्मविश्वास के पंख फैलाए – खुलेगा आसमान

हमारे  परिवार  समाज  आस- पड़ोस  में  आए  दिन  लड़कियों  के  प्रति  घट  रही  भेदभाव  की  घटनाएं  झकझोर  देती  हैं  और  मजबूर  करती  हैं  यह  सोचने  के  लिए  कि  क्या  हम  वाकई  21 वीं  सदी  की  ओर  जा  रहे  हैं ।  विद्या  से  परिपूर्ण  होकर  जब  महिलाएं  आंखें  खोलेंगी  तब  अनुभव  करेंगी  सत्य ,  कि  आत्मविश्वास  के  पंख  फैलाए  खुलेगा  आसमान ।  प्रकृति  के  कितने  विलक्षण  फूल  गेंदा  ,गुलाब , जूही  , चंपा , चमेली  ,सब  एक  दूसरे  से  अलग  अलग  हैं  फिर  भी  है  तो  फूल  ही |  उसी  प्रकार  सभी  महिलाओं  की  समस्या  अलग-अलग  है  परंतु  मूल  समस्या  महिलाओं  की  ही  है ।  दरअसल  युगो  युगो  से  पुरुष  ने  स्त्रियों  को  यही  समझाया  कि  पुरुष  श्रेष्ठ  है  और  सहजता  से  भारतीय  स्त्री  अपने  आप  को  हीन  मान  बैठी  है  और  जिस  देश  की  आधी  आबादी  यह  मान  बैठे  कि  वह  कमजोर  है  तो  उस  देश  का  विकास  हो  तो  कैसे |  प्रकृति  के  विरुद्ध  तो  विज्ञान  भी  नहीं  जा  पाया  और  पुरुष  को  जन्म  तो  स्त्री  ही  देती  है  जहां  मां  दीन  हो  वहां  बेटे  कैसे  गौरवशाली  हो  सकते  हैं ।  पालन  पोषण  भी  इसी  भाव  से  किया  जाता  है  कि  बेटा  गर्लफ्रेंड  के  साथ  घूमे  तो  बड़ा  हो  गया  लल्ला  और  बेटी  घूमे  तो  समाज  कहे  कि  बड़ी  बेशर्म  है  ऐसा  क्यों  है  ,क्यों  नारियां  स्वयं  को  ही , अपनी  बेटियों  को , अपनी  बहुओं  को  दोयम  दर्जा  देती  हैं  । आदिकाल  से  पुरुष  ने  स्त्री  के  लिए  जो  मानदंड  बना  दिए  हैं  उनसे  उन्हें  स्वयं  ही  बाहर  आना  होगा  और  युगों  युगों  से  जो  द्वार  स्त्री  स्वयं  ही  बंद  किए  बैठी  है  क्योंकि  असुरक्षा  केवल  बाहर  नहीं  है  घर  के  भीतर  भी  तो  है  आज  सर्वप्रथम  महिला  को  स्वयं  से  एक  बड़ा  संघर्ष  करना  होगा  स्वतंत्रता  कभी  आसानी  से  नहीं  मिलती  लेनी  पड़ती  है ।                                                                                                                                        फ्रांस  में  क्रांति  हुई  तो  क्रांतिकारियों  ने  उस  जेल  को  तोड़  दिया  जहां  सबसे  ज्यादा  आजीवन  कारावास  की  सजा  काट  रहे  अपराधी  कारागृह  में  बंद  थे  उस  कारागृह  का  नाम  था  बस्तिले  ।  उन  कैदियों  को  सदा  के  लिए  बेड़ियां  पहनाई  जाती  थी  जो  मरने  पर  ही  कटती  थी , क्रांति  हुई  तब  कैदियों  की  जंजीरे  काट  दी  गई  और  कहा  गया  कि  अब  तुम  जहां  जाना  चाहते  हो  जाओ   किन्तु  कैदी   स्वतंत्र  ही  नहीं  होना  चाहते  थे  कैदियों  ने  कहा – हम  बाहर  नहीं जाना  चाहते  , किंतु  क्रांतिकारियों  ने  उन्हें  जबरदस्ती  निकाल  दिया  शाम  होते  होते   सभी  कैदी  वापस  आ  गए  कि  हम  जाएं  तो  जाएं  कहां  इतने  वर्षों  का  अभ्यास  है  बेड़ियों  का  हमारी  वापस  लौटा  दिया  जाए ।                                                                                                                                                          विचार  करें  महिलाएं  , जबरदस्ती  किसी  को  स्वतंत्र  करने  का  कोई  उपाय  नहीं  है  स्वतंत्रता  दी  नहीं  जा  सकती  स्वयं  लेनी  पड़ती  है |  अपने  अवगुण  अपने  आवरण  स्वयं  ही  त्यागने  पड़ते  हैं  इस  मानसिक  स्वतंत्रता  की  तैयारी  स्वयं  ही  करनी  होगी  भय  छोड़ना  होगा , आंखे   खोलनी  पड़ेगी ,षड्यंत्र  समझना  पड़ेगा  ,सारे  शास्त्र  पुरुषों  ने  लिखे  हैं  मान्यताएं  रूढ़ियां , परंपराएं  पुरुषों  ने  बनाई  है  तो  महिलाओं  ने  आंख  बंद  करके  स्वीकार  की  है  परंतु  क्यों ? क्यों  महिलाएं  प्रश्न  नहीं  करती  क्यों  आज  भी  इस  देश  में  बेटी  बचाओ  बेटी  पढ़ाओ  जैसे  नारों  की  जरूरत  पड़ती  है  आधुनिकता  विकास  और  तरक्की  के  सारे  दावे  वादे  और आंकड़े  लड़कियों  के  साथ  हो  रहे  भेदभाव  पर  मानो  थम से  जाते  हैं ।                                                            महिला  घर  परिवार  की  केंद्र  बिंदु –  महिला  परिवार  की  केंद्र  बिंदु  है  । नारी  ब्रह्मांड  की  सर्वश्रेष्ठ  कृति  बच्चे  को  जन्म  देती  है  उसे  बराबरी  का  स्थान  तो  मिलना  ही  चाहिए  । सामान्य  भारतीय  परिवारों  में  आज  भी  शिक्षा  ,स्वास्थ्य  ,व  अन्य  सुविधा  देने  की  बात  आती  है  तो  पुत्र  को  ही  महत्व  दिया  जाता  है  । एक  प्रतिभावान  लड़की  की  पढ़ाई  इसलिए  छुड़ा  दी  जाती  है  क्योंकि  भाई  का पढ़ना  ज्यादा  जरूरी  है ।                                                                                                                                        लड़कियों  का  महँगा  इलाज  नहीं –  केंद्रीय  मंत्री  ने  स्वयं  इसका  उदाहरण  देते  हुए  बताया  कि  कैंसर  अस्पताल  के  दौरे  के  दौरान  70%  वहां  इलाज  करा  रहे  थे  लड़के  जबकि  लड़कियों  की  संख्या  काफी  कम  थी  इसका  मतलब  यह  है  कि  घर  वाले  लड़कियों  का  महंगा  इलाज  भी  नहीं कराते ।                                                                                                                  भेदभाव  की  शिकार –  महिलाएं  तमाम  विरोध  विद्रोह  और  संघर्ष  के  बाद  पढ़  लिखकर  जब  बाहर  निकलती  है  तो   पग – पग  पर  उन्हें  भेदभाव  का शिकार  होना  पड़ता  है  एक  सर्वे  के  अनुसार  30  से  40 तक  की  कामकाजी  महिलाओं  को  पुरुषों  की  तुलना  में  30%  तक  कम  वेतन  दिया  जाता  है  और  भी  कई  तरह  के  भेदभाव  का  शिकार  होना  पड़ता  है  भारतीय  महिलाएं  पुरुषों  की  अपेक्षा  50%  अधिक  काम  करती  हैं  । आंकड़ों  के  मुताबिक  देश  की  केवल  45  परसेंट  कंपनियां  ही  महिलाओं  को  9  से  12  सप्ताह  का  समय  सवैतनिक  मातृत्व  अवकाश  देती  हैं ।                                                                                             देश  की  जीडीपी  में  बढ़ोतरी – अंतरराष्ट्रीय  मुद्रा  कोष  का  कहना  है  कि  अगर  कार्य  क्षेत्र  में  महिलाएं  भी  पुरुषों  के  बराबर  हो  तो  देश  की  जीडीपी  यानी  सकल  घरेलू  उत्पाद  में  27%  की  बढ़ोतरी  हो  सकती  है  देखा  जाता  है  कि  पढ़ी –  लिखी  अधिकांश  महिलाओं  की  आर्थिक  आजादी  का  फैसला  शादी  के  पहले  पिता  अथवा  भाई  और  शादी  के  बाद  पति  या  ससुराल  वाले  ही  करते  हैं ।                                                                                                            बहुत  ही  दुख  शर्म  और  चिंता  की  बात  है  कि  महिला  को  केवल  इसलिए  भेदभाव  का  शिकार  होना  पड़  रहा  है  क्योंकि  वह  एक  महिला  है  इसके  खिलाफ  महिलाओं  को  अपनी  आवाज  बुलंद  करनी  होगी  अपनी  आजादी  के  लिए  संघर्ष  करना  होगा  और  एक  लंबी  आत्मविश्वास  ऊंची  उड़ान  के  लिए  अपने  पंखों  को मजबूती  से  फैलाना  होगा  और  तभी  मिलेगा  उन्हें  खुला  आसमान । 

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