बाल साहित्य का बच्चों पर प्रभाव
अच्छी किताबों से मानसिक और वैचारिक विकास होता है और बच्चे बड़े होकर संपूर्ण शख्सियत के मालिक बनते हैं । रीडिंग एक्सपोर्ट , जिम टेलर्स कहते हैं कि 4 माह का बच्चा पेंन पकड़ने लगता है , रंग बिरंगी वस्तुओं पर उसकी नजरें टिकने लगती है । आप थोड़ी देर ही सही उसके सामने किताबों को पढ़िए इससे उसे लगेगा किताब में कोई तो ऐसी बात है जिसे पढ़ते भी हैं , साल भर के बच्चे से अगर कहते हैं कि वह ताली बजाए तो बच्चा ताली बजाता है , हाथ भी जोड़ता है , इसी उम्र के आसपास उसे छोटी छोटी सरल भाषा की कहानियां सुनाएं जिन शब्दों को वह जानता है कहानियां भी उन्हीं शब्दों की सुनाइए 3 से 5 साल में किताबों से नाता जोड़ना अच्छा होता है । प्रेरणा देती हैं पुस्तकें – सभी जानते हैं कि गांधीजी को महान बनाने में गीता और टॉलस्टॉय की किताबों का योगदान था , अतः बच्चों को महापुरुषों की जीवनी एवं आत्म कथाएं भी पढ़ाएं इससे उन्हें पता चलता है कि महापुरुषों ने जीवन में कैसे – कैसे संघर्ष किए हैं इससे बच्चे संघर्षशील बनते हैं ।
किताबें मनोरंजन करती हैं – जब बच्चा छोटा होता है तब तो वह अपनी जिज्ञासा माता – पिता से पूछ पूछ कर ही पूरी कर लेता है लेकिन जब वह अपनी स्कूली किताबों के अलावा अन्य किताबें पढ़ने में रुचि लेता है तो वह समय आपके लिए सतर्क रहने का भी है इस समय उम्र के हिसाब से उसे मनोरंजक पुस्तकें पढ़ने को देनी चाहिए , परी कथाओं कार्टून की सचित्र पुस्तकें ज्ञान के अलावा मनोरंजन भी करती है बच्चा जब समझने लगे कि किताबों से मनोरंजन भी होता है तो उसकी रुचि पढ़ने में बढ़ने लगती है । बुद्धि चातुर्य से भरा साहित्य पढ़ाएं – आप जब भी बच्चे के लिए साहित्य किताबे खरीदें तो इस बात का ध्यान रखें कि वह कहीं चमत्कारी घटनाओं से रंगी तो नहीं है बच्चे इन्हें बड़ी खुशी से पढ़ते हैं लेकिन केवल ऐसा साहित्य पढ़ने से बच्चा खुद को भाग्यवादी मान लेता है और मुसीबत पड़ने पर भाग्य के सहारे बैठकर किसी चमत्कार की उम्मीद करने लगता है | साहस , बल , बुद्धि , चातुर्य के इस्तेमाल की उसे जरूरत ही नहीं लगती ऐसे में उसका सही विकास नहीं हो पाता अतः उसे यथार्थ , विज्ञान और अच्छी शिक्षा देने वाली किताबों को देने का प्रयास करें ।
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