भौतिकता की धुंध में चरित्र निर्माण

भौतिकता  के  झुंड  में  चरित्र  निर्माण  एक  महत्वपूर्ण विषय  है  जो  आज  के  समय  में  और  भी  प्रासंगिक  हो गया  है ।  भौतिकता  की  दौड़  में  हम  अक्सर  अपने चरित्र  को  भूल  जाते  हैं  और  अपने  मूल्यों  को  खो  देते हैं ।                                                                                                 मौजूदा  शिक्षा  प्रणाली  में  प्राथमिक  से लेकर  उच्च विद्यालयों  और  महाविद्यालय  से  लेकर विश्वविद्यालय  तक  अध्ययन  करते  हुए  छात्र  18 – 20 वर्ष  व्यतीत  करते  हैं  जीवन  के  इन  महत्वपूर्ण  वर्षों  के निवेश  का  लक्ष्य  ज्ञान  अर्जन  होता  है  यह  ज्ञान  अर्जन कुछ  एक  विषयों  का  होता  है  आशा  अपेक्षा  की  जाती है  कि  उन  विषयों  का  अध्ययन  करके  इस  योग्य  बन जाए  कि  अपना  जीवन  सुख  पूर्वक  बिता  सके  लेकिन दुखद  सच्चाई  है  कि  आज  छात्र  पढ़ते  तो  है  परंतु  ज्ञानोपार्जन  नहीं  करते ,  अधिकांश  को  तो  भले  बुरे  को समझने   का  विवेक  तक  नहीं  मिल  पाता  ।
      हमारी  संस्कृति  में  गुरु  और  शिष्यों  का  संबंध व्यापारिक  नहीं  बल्कि  सीखने  सिखाने  का  होता  था, पढ़ने  पढ़ाने  से  आध्यात्मिक  संबंध  हो  जाता  था। आजकल  शिष्य  दिन  दहाड़े  किसी  शिक्षक  को  कम नंबर  देने  पर  चाकू  मार  देते  हैं  या  फिर  किसी  गुरु  द्वारा  छात्र  का  शोषण  किया  जाना  इस  स्थिति  के  लिए हम  किसको  दोष  दें  , किताबी  अध्ययन  में  छात्र व्यावहारिक  , सार्थक  और  रचनात्मक  ज्ञान  ना  के  बराबर  अर्जित  कर  पाते  हैं  पर  लिखकर  भी  जब  छात्र बेकार  रह  जाता  है  तो  निरंतर  मानसिक  हीनता  का शिकार  हो  जाता  है  ऐसे  में  हम  उसे  क्या  उम्मीद  कर सकते  हैं  चरित्र  के  अभाव  में  किसी  देश  का  सम्यक विकास  नहीं  हो  सकता  और  देश  के  चरित्र  का  अर्थ  है  उसके  नागरिकों  का  चरित्र  ,  नागरिक  जब  ज्ञानवान होते  हैं  तभी  साहित्य  विज्ञान  आदि  क्षेत्रों  में  उपलब्धियां प्राप्त  कर  पाते  हैं  ।
          चरित्र  निर्माण  के  लिए  हमें  अपने  आंतरिक  गुणों  पर  ध्यान  केंद्रित  करना  होगा , जैसे  कि  सत्यनिष्ठा, ईमानदारी,  और  सहानुभूति ।  हमें  अपने  बच्चों  को  भी इन  मूल्यों  को  सिखाने  की  आवश्यकता  है,  ताकि  वे भौतिकता  के  झुंड  में  खो  न  जाएं ।
चरित्र निर्माण के लिए हमें अपने समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। हमें अपने आसपास के लोगों को जागरूक करना होगा कि चरित्र निर्माण कितना महत्वपूर्ण है और इसके लिए हमें क्या करना होगा।                                                           चरित्र  निर्माण  एक  सतत  प्रक्रिया  है  जिसमें  हमें  निरंतर  प्रयास  करना  होगा ।  हमें  अपने चरित्र  को  मजबूत  बनाने  के  लिए  नियमित  रूप  से आत्म- मूल्यांकन  करना  होगा  और  अपने  कमजोरियों  पर  काम  करना  होगा ।  इस  तरह,  हम  भौतिकता  के  झुंड  में  भी  अपने  चरित्र  को  बनाए  रख  सकते  हैं  और एक  बेहतर  समाज  का  निर्माण  कर  सकते  हैं ।
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