किसी भी राष्ट्र की प्रगति का सर्वोत्तम थर्मामीटर है वहां की महिलाओं की स्थिति , जब भी देश में महिलाओं के हक ,अधिकार और सम्मान की बात होती है तो साथ ही साथ प्रश्न यह भी उठना है की सूचना विस्फोट के इस दौर में महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति कितनी जागरूक हैं अगर तथ्यों पर गौर करें तो निराशा ही होती है भारत जैसे दुनिया के तमाम देशों में आज भी दो तिहाई से ज्यादा महिलाओं को अपने से जुड़े कानून की भी जानकारी नहीं है महिलाओं को अपना हक नहीं पता वह अपने अधिकारों को नहीं जानती चाहे वह पढ़ने और बाल विवाह से बचने का हक हो या संपत्ति , तलाक , मां बनने , घरेलू हिंसा जैसे मामलों में हक , महिलाएं जानकारी के अभाव में पीछे रह जाती हैं जागरूकता के अभाव में महिलाएं प्रताड़ना सहने को मजबूर होती हैं । वैदिक युग से लेकर वर्तमान तक महिलाओं की सामाजिक स्थिति में अनेक तरह के उतार- चढ़ाव आते रहे हैं और उसके अनुसार ही उनके अधिकारों में भी बदलाव होता रहा है, इन बदलावों के कारण ही वर्तमान में महिलाओं का योगदान भारतीय राजनीतिक आर्थिक ,सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्थाओं में दिनों दिन बढ़ रहा है । आंकड़े बताते हैं कि प्रतिवर्ष चिकित्सा के क्षेत्र में भाग लेने वाले कुल परीक्षार्थियों में 50% महिलाएं परीक्षा उत्तीर्ण कर चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रही हैं। स्वतंत्रता के बाद लगभग 12 महिलाएं विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री बन चुकी हैं ,भारत के अग्रणी सॉफ्टवेयर उद्योग में 21% पेशेवर महिलाएं हैं । राजनीतिक ,खेल ,पायलट और उद्यम आदि क्षेत्रों में जहां वर्षों पहले तक महिलाओं के होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती उन क्षेत्रों में भी आज महिलाओं ने अपना स्थान बनाया हुआ है । हालांकि कुछ लोग लगातार यह सवाल उठाते हैं कि क्या महिलाएं सिर्फ महिला होने की वजह से ही सम्मान के अधिकारी हो सकती हैं। दरअसल महिलाओं के हक और स्वाभिमान पर जब चर्चा होती है तो लोग यह भूल जाते हैं कि महिलाओं के लिए सम्मान मांगने का मतलब यह कतई नहीं है कि वह महिलाएं हैं और उन्हें कोई विशेषाधिकार चाहिए ऐसी सोच औरतों की बराबरी की लड़ाई को कमजोर करती हैं हमें बस यह ध्यान रखना चाहिए कि असल मकसद बराबरी का है , विशेष दर्जा पाना नहीं है इस बराबरी के मोर्चे पर महिला हो या पुरुष दोनों को ही सम्मान देने और कई बार समझे जाने की जरूरत होती है , लेकिन यह बराबरी तब सही मायने में समाज के सामने आएगी जब महिलाएं खुद से जुड़े मुद्दों को पहचानेंगे , अगर महिलाएं अपने अधिकार जाने तो सामाजिक ताना -बाना खुद ही सुदृढ़ हो जाएगा , जैसे उन्हें मालूम होना चाहिए कि उन्हें निशुल्क कानूनी अधिकार , सहायता का अधिकार , महिलाओं को अपने खिलाफ हुई किसी भी तरह की अप्रिय वारदात पर देर से भी शिकायत करने का अधिकार है , उन्हें सुरक्षित कार्यस्थल का अधिकार है , जीरो एफ0 आई 0 आर0 का अधिकार भी उनको पता होना चाहिए, । हमें महिलाओं को ऐसी स्थिति में पहुंचाने की कोशिश करनी चाहिए जहां वह अपनी समस्याओं को अपने ढंग से खुद सुलझा सके , हमारी भूमिका महिलाओं की जिंदगी में उनका उद्धार व सहयोग करने वाली , ऐसे मामलों में जब जागरूकता बढ़ेगी तो पहले महिलाएं खुद को सम्मान देना शुरू करेंगे और फिर एक नया समाज बनेगा