प्रेरणा – अपने लिए जिए तो क्या जिए !
हम सबके लिए बढ़ती उम्र एक बहाना होती है आराम करने या फिर सुख -सुविधाओं का उपभोग करने का , लेकिन कुछ महिलाएं ऐसी भी है जो अपनी जीवन संध्या में भी अपने देश और समाज को कुछ देने का मकसद ही उनका जुनून है । इन महिलाओं के लिए बढ़ती उम्र समाज के लिए कुछ करने की ललक को बढ़ाती है । हमारे समाज में इस तरह की महिलाओं की संख्या काफी है जिन्होंने ऐसा कार्य किया है , जिससे देश और समाज का भला हुआ है और हो रहा है । ऐसे ही महिलाओं में – डॉक्टर रानी बांग , बिजी पेन कुट्टू , चेतना गाला सिन्हा , प्रोफेसर चिलकुरी संगमा और डॉक्टर रुक्मणी राव है । इनकी खास बात यह है कि इन्होंने अकेले ही शुरुआत की , दूसरी बात बढ़ती उम्र उनके आडे कभी नहीं आई , इनके जज्बे को देखकर युवा पीढ़ी में भी कुछ करने का जोश भर जाता है –
डॉ रानी बंग – डॉ रानी बंग उन लोगों खासकर महिलाओं के लिए कार्य करती हैं जो समाज में उपेक्षित है अनपढ़ है या बहुत कम पढ़ी -लिखी है इसी सोच के साथ 1985 में उन्होंने सर्च संस्था की नींव डाली , सर्च यानी सोसायटी फॉर एजुकेशन एक्शन एंड रिसर्च इन कम्युनिटी हेल्थ । यह संस्था गरीबों के लिए पूरी तरह समर्पित है उनकी संस्था महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में आदिवासियों के बीच कार्य करती है । डॉक्टर रानी को पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है , रानी ने ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों के बीच कार्य करते हुए यह देखा कि देश में नवजात शिशुओं की मौत का जो कारण डायरिया बताया जाता है वास्तव में उससे अधिक उसे नहीं बल्कि निमोनिया से सबसे अधिक मौत होती है , इस पर कार्य करते उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन को अपनी ड्रग मैन्युफैक्चरिंग स्ट्रेटजी बदलने पर मजबूर कर दिया ।
- 2 – बिजी पेनकुट्टु – कोझिकोड के मिधियीतेरु स्ट्रीट बाजार में महिलाओं के बैठने की कोई जगह नहीं थी , टॉयलेट की भी कोई व्यवस्था नहीं थी यह सब केरल जैसे उस राज्य के एक शहर की घटना थी जहां महिलाओं की साक्षरता पूरे देश में सबसे अधिक है ऐसे ही बुरे अनुभवों से गुजरी , कालीकट की विजि पेन कुट्टू जिन्होंने इस सोच और व्यवस्था को बदलने की ठानी । महिलाओं के प्रति वहां के पुरुष व्यापारियों में जो सोच थी उसने भी काफी विचलित किया , उन्होंने जब उन व्यापारियों से महिलाओं के लिए टॉयलेट और बैठने की व्यवस्था करने की बात की तो कुछ व्यापारियों ने तो यहां तक कह दिया कि , पानी कम पियो ताकि टॉयलेट कम आए या फिर अपने साथ कुछ रखा करो सोचिए ऐसे माहौल में किसी महिला का उस बाजार में काम करना कितना कठिन रहा होगा लेकिन बीजी ने इसकी परवाह किए बिना महिलाओं को इकट्ठा किया और पेन कुट्टू अस्तित्व में आई । पेन कुट्टू अर्थात ‘ वुमेन फॉर ईच अदर ” उन्होंने राइट टू सीट और और पेन कुट्टू यानी जो वूमेंस ट्रेड यूनियन की स्थापना की जिसका मकसद था बाजार में समान बेचने वाली महिलाओं के बुनियादी अधिकारों के लिए कार्य करना उनकी एक छोटी सी शुरुआत में तमाम महिलाओं को अपनी गरिमा बनाएं और बचाए रखने में मदद की यही नहीं 8 सालों की लड़ाई के बाद केरल सरकार को डी केरला सोप एंड कमर्शियल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2018 बनाना पड़ा ।
चेतना गाला सिंन्हा – चेतना गाला सिंन्हा मुंबई में जन्मी और मुंबई में पली बढी और शिक्षा वहीं से प्राप्त किया, हम अच्छी जगह से पढ़ाई लिखाई कर जिंदगी भर अपनी सुख सुविधाओं को बटोरने में लगे रहते हैं वही 25 साल पहले 6 लाख की पूंजी से 200 किलोमीटर दूर सतारा जिले के महेश्वर कस्बे में एक बैंक है “मन देसी बैंक ” यहां की महिलाओं को 10 ₹ 15 रोज की मामूली सी ईएमआई पर ऋण मिलता है वरना ऐसा कौन सा बैंक है जो आपको ₹ 15 रोज की ई एम आई पर दे दे वह भी उन महिलाओं को जिनके पास गारंटी देने के लिए कुछ नहीं है लेकिन यह बैंक यही काम करते हैं और यह चलता है चेतना गाला सिंन्हा की देखरेख में 25 साल पहले को 6 लाख पूंजी से या बैंक शुरू हुआ और देखते -देखते 3 लाख महिलाओं की सदस्यता तक पहुंच गया जिस दिन के लिए 140 फील्ड कार्यकर्ता दिन -रात सहायता कार्य करते हैं मन देसी महिला सहकारी बैंक के नाम से स्थापित यह बैंक ग्रामीण महिलाओं को मामूली ब्याज पर छोटे से छोटा ऋण मुहैया करता है इस बैंक की खासियत यह है कि ग्रामीण महिलाओं को उनके आर्थिक आधार पर ऋण चुकता करने की क्षमता के अनुसार सहूलियत देता है ।
डॉक्टर रुक्मणी राव – शहरी महिलाओं के लिए तमाम प्लेटफार्म मौजूद है लेकिन देश की सबसे बड़ी आबादी अभी ग्रामीण क्षेत्रों में ही रहती है और ग्रामीण महिलाओं के लिए ऐसा जीवन जीना एक सपना से काम नहीं है शिक्षा के क्षेत्र में हालात भले सुधरे हो लेकिन सामाजिक और आर्थिक समानता अभी कोसों दूर है ऐसे में यह महिलाएं क्या करें । 80 के दशक में ग्रामीण भारत की उन तमाम महिलाओं के बारे में जो घरेलू अत्याचार , दहेज हत्या, मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना से जूझती थी , उनके लिए कुछ करने की तड़प ने डॉक्टर रुक्मणी राव को ऋण ” सहेली ग्रुप” की स्थापना करने की प्रेरणा दी । यह ग्रुप दहेज , घरेलू अत्याचार , शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न आदि की शिकार महिलाओं को हर .तरह की सहायता देने के लिए बनाया गया है । डॉक्टर रुक्मणी ने जब कुछ महिलाओं के साथ होने वाले इस तरह के अत्याचार और उनके बाद की परिस्थितियों का अध्ययन किया तो पाया कि महिलाओं के पास किसी भी तरह की सहायता का कोई सहारा नहीं था तब उनके ग्रुप सहेली ने ऐसी ग्रामीण महिलाओं के लिए तमाम तरह की कानूनी गैर कानूनी सलाह और सहायता देने का बीड़ा उठाया, इस समय वह अपनी संस्था के साथ जरूरतमंद ग्रामीण महिलाओं को एक बड़ा सहारा बन चुकी हैं ।
प्रोफेसर चिलकुरी संतम्मा – हमारे देश में जहां 95 साल तक जीना ही एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है उस उम्र में प्रोफेसर चिलकुरी शांतम्मा अपने घर से 60 किलोमीटर दूर ट्रेन से रोजाना ग्रेजुएशन पोस्ट ग्रेजुएशन के विद्यार्थियों को भौतिकी पढ़ाने जाती हैं । जी हां यह सपना नहीं बल्कि एक हकीकत है देश में 60 साल की उम्र में नौकरी करने वाले रिटायर्ड हो जाते हैं लेकिन प्रोफेसर चिलकुरी 60 साल से फिजिक्स पढ़ा रही है इसलिए उनको चलता फिरता एनसाइक्लोपीडिया भी कहा जाता है आज उनको बैसाखी का सहारा लेना है लेकिन प्रोफेसर चिलकुरी शांतम्मा अपने घर विशाखापट्टनम से विजयनगरम तक ट्रेन से पढ़ाने जाती हैं और सेंचुरियन विश्वविद्यालय में फिजिक्स पढ़ाती हैं उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं , 2016 में उन्हें वेटरन साइंटिस्ट वर्ग में गोल्ड मेडल प्राप्त हो चुका है प्रोफेसर शांतम्मा देश- विदेश में लाखों युवतियों और महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं ।
यह भी पढे 1 –कर्म शक्ति और साहस – तनिक विचार करे
2 – खुशी पर अनमोल विचार