जिएं जिंदगी 60 के बाद भी
बढ़ती उम्र के असर को रोकना असंभव है , बढ़ती उम्र किसी पर बोझ या अभिशाप नहीं होती । जीवन की जैसे और अवस्थाएं हैं वैसे ही वृद्धा अवस्था भी है किसी भी दृष्टिकोण या कायदे कानून से वृद्ध व्यक्ति कमजोर असहाय नहीं हो जाता, ना ही आत्मनिर्भरता छोड़ किसी के कंधे का सहारा लेना अनिवार्य हो जाता है बस जरूरत है खुद की मानसिक सोच तथा विचारधारा के आगे उम्र को बाधक नहीं बनने देने की और दिल दिमाग दोनों से पहले की तरह स्वस्थ और चुस्त- दुरुस्त महसूस करते हुए खुश रहकर जीवन जीने की , बिना किसी तनाव के उमंग और उल्लास से परिपूर्ण जिंदगी के पल बिताने की । जब पूरी उम्र पूरी जिंदगी एक स्वाभिमान और रौब के साथ जीते हुए गुजारी है ,तो जीवन संध्या में क्यों किसी पर इस तरह से निर्भर हो जाएं कि बुढ़ापा बेबसी में बदल जाए । जब तक जिए , जिंदगी से भरपूर रहिए , इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान देकर प्रसन्नता व उत्साह से भरपूर जीवन 60 के बाद भी बिताया जा सकता है –
* जीवन की एक महत्वपूर्ण अवस्था वृद्धावस्था है इसलिए तन मन से अपने में किसी प्रकार का अंतर ना महसूस करें , लोग क्या कहेंगे इसकी परवाह न करते हुए जैसी दिनचर्या बितानी चाहें वैसी ही बिताए , जो आपका शौक़ वह इच्छाएं हैं उन्हें अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा बनाए रखें , उम्र को निर्भरता का सूचक ना मानते हुए स्वयं की मनमर्जी से जिंदादिली के साथ जिए और किसी को अपनी पर्सनल जिंदगी में हावी ना होने दें । * परिवार आपके साथ है एक छत के नीचे , बेटा बहू और अन्य पारिवारिक सदस्यों के साथ मिलजुल कर रहना अच्छी बात है परंतु अपनी बढ़ती उम्र को देखते हुए सबके साथ रहने को अपनी कमजोरी या बेबसी न बना लें और ना ही सबकी हां में हां मिलाते हुए असहाय बनकर स्वयं के व्यक्तित्व को कमजोर और अस्तित्व हीन न बनने दें । * उम्र के बढ़ने और आपके तन मन से कमजोर होने का कोई तालमेल नहीं है ,सर्वप्रथम तो यह वहम अपने मन से निकाल दीजिए कि आप पहले जैसे नहीं रहे , बढ़ती उम्र के साथ सब बदल गया , बदलता कुछ भी नहीं है जो थोड़े बहुत बदलाव आते हैं वे स्वाभाविक व प्राकृतिक ही हैं ,उनके अनुसार संयम व सामंजस्य बनाकर रखें और सामान्य व्यवहार करते हुए जिंदगी को खुशनुमा बनाते हुए जीवन जिएं । * सारी उम्र आप जिस दमदार व्यक्तित्व के लिए जाने जाते रहें है उसे हमेशा बरकरार रहने दें , ढलती उम्र में औरों पर अपनी निर्भरता के भय से खुद के सोच , विचारों को बदलने का प्रयास नहीं करें । पारिवारिक सदस्यों की कहीं बातों में सही गलत का भेद रखते हुए निर्णय लें , अति महत्वपूर्ण यह है कि घर में अपना स्थान सर्वोच्च और बड़प्पन से भरपूर रहने दे । * अपने तजुर्बे , अनुभव के आधार पर प्रिय जनों की हरसंभव सहायता करें ,उन्हें भरपूर प्यार देते हुए उचित मार्गदर्शन दें लेकिन यह बिल्कुल न सोचें कि आगे जाकर यही हमारे काम आएंगे , हमें बुढ़ापे में सहारा देंगे ,तो उनकी अनावश्यक जिम्मेदारी भी अपने ऊपर न ले लें । उनके कार्य को स्वयं पूरा कर उन्हें आराम करने न दें और बेवजह स्वयं को थकाते न रहे, याद रहे घर में जो जिसका काम है वही करे तो अच्छा रहता है इससे संतुलन बना रहने से सुख शांति भी कायम रहती है । * जैसे -जैसे उम्र बढ़ती है वैसे -वैसे पारिवारिक जिम्मेदारियां कम होती जाती हैं तो अनावश्यक खर्चे भी कम हो जाते हैं इसलिए आप आर्थिक रूप से इतने सक्षम तो रहते ही हैं कि स्वयं की आवश्यकता की पूर्ति उचित ढंग से कर सकें अतः आत्मनिर्भरता के साथ तनाव रहित रहे ,खुद को बोझ ना समझते हुए खुशी से सुरक्षा अनुसार जिंदगी बिताएं ,उचित व सही मान सम्मान के हकदार बने रहें । बढ़ती उम्र के भय से धीरे -धीरे अपनी सोच मानसिकता को बदलते हुए जबरदस्ती खुश रहने का प्रयास नहीं करें वास्तव में आप जैसे रहते हैं वैसे ही आगे भी रहते रहे अपनी जीवनशैली वह अपनी आदतों में थोड़ा बहुत ही समझौता करें और कुंठित होकर ना रहे दिल से स्वीकार कीजिए कि बढ़ती उम्र एक सामान्य व कुदरती प्रक्रिया है इसे अन्यथा ना लेते हुए जीने के शेष दिन इच्छा अनुसार मनमाफिक बिताए । एक बुलंद हौसले व सकारात्मक सोच के साथ भरपूर जीवन खुशी -खुशी जीते रहे और अंत तक अपने व्यक्तित्व को गरिमामय और प्रभावशाली बनाए रखें ।
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