घर या मकान का वजूद
आखिर इंसान घर क्यों बनाता है अपनी व परिवार की सुरक्षा , मजबूत स्थिति , साथ और ठहराव के लिए ही वरना कईयों की तो पूरी जिंदगी बीत जाती है अपना एक घर बनाने में लेकिन घर की भी एक खूबसूरत परिभाषा होती है पहचान होती है जिससे वह घर कहलाता है वह है प्यार , अपनापन , सहयोग एक – दूसरे के सुख – दुख में साथ देना आदि छोटी छोटी बातों की खुशियां छोटी बड़ी उपलब्धियों से जुड़े यादगार पल ही तो है जो एक गारे सीमेंट के मकान को मोहब्बत भरा घर बना देते हैं क्योंकि वहां माता – पिता भाई – बहन पति – पत्नी बच्चों रिश्तेदारों से जुड़े जाने कितने प्यार भरे लम्हे होते हैं बचपन की शरारते , नोकझोंक , खुशी , गम के पल , उम्मीदें , महत्वाकांक्षाए , प्यार की सौगात , अनगिनत भावनाओं को अपने में समेटे व संजोए होता है घर । हर किसी के पास आज वक्त की कमी है हर कोई अपनी अपनी ख्वाहिशों की उलझनों में उलझा सा रहता है कहीं बच्चे आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चले जाते हैं तो कहीं नौकरी की खातिर बेटे दूर हो जाते हैं और मजबूर पेरेंट्स अपने ही घर में तन्हा रह जाते हैं फिर भी एक आस और विश्वास रहता है कि एक दिन वे लौट कर आएंगे , पेरेंट्स का विश्वास ही तो होता है कि उनका मकान फिर से घर बन जाएगा और अपनों के चहल पहल से घर का हर कोना रोशन हो जाएगा । पढ़ाई नौकरी जरूरतों ने इस भागती जिंदगी में हमें एक ऐसा खिलाड़ी बना दिया है जो हर रोज दौड़ रहा है घर से ऑफिस , स्कूल , कॉलेज , क्लासेज , बिजनेस आदि यानी हम सभी बस सुबह से शाम तक एक अनजानी व अनकही सी प्रतियोगिता में हिस्सा लेते हुए बस भाग रहे हैं और घर रात बिताने का जरिया सा बनता जा रहा है यानी जहां पर हम रात को पहुंचते हैं और फिर सुबह घर से निकल जाते हैं तभी तो इस भावनाओं से रचे बसे घर को भी आखिर कहना पड़ जाता है कि जनाब मैं घर नहीं मकान हूं । वह तो बहुत पुरानी बात हुई जब मुझे घर कहा जाता था सभी मेरे पास थे हंसी व शरारतों की अठखेलियां होती थी खाने खिलाने का लंबा दौर चलता था तीज त्यौहार की रौनक होती थी अपने पराए सभी मिल जाते थे घर का यह अनकहा दर्द बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देता है कि आखिर यह कहां आ गए हम , क्यों नहीं हमें फुर्सत अपनों के संग वक्त गुजारने की , एक बार इसके बारे में जरूर सोचिएगा। मनोवैज्ञानिक परमिंदर निज्जर का यह मानना है कि घर को लेकर हर किसी की सोच अलग – अलग होती है जैसे – * किसी के लिए घर सुरक्षा है जहां वे खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं । * कुछ के लिए घर सुकून में आराम करने का ठिकाना है । * कुछ लोगों के लिए घर होटल जैसा है जहां वे कुछ समय खासकर रात बिताकर सुबह निकल जाते हैं । * अधिकतर लोगों के लिए घर उनकी पहचान है क्योंकि वहां उन पर उनकी नेम प्लेट है जिन पर उनकी पहचान है । लेकिन इन सब चाहतों और जरूरतों के पीछे कहीं ना कहीं घर के होने का सच्चा वजूद दफन सा हो जाता है हम क्यों यह भूल जाते हैं कि हमारे बचपन , लड़कपन व खट्टी मीठी यादों का केंद्र है घर , माता – पिता के त्याग प्रेम , संघर्ष, अरमान , खुशी व आशाओं की साक्षी है घर । आज फिर जरूरत है मकान को घर बनाने की खुद को टटोलें और देखें कि कहां है हम , क्यों हमें इतनी जल्दबाजी में भागदौड़ है अपनों को भरपूर समय दे वरना ऐसा
भी वक्त आएगा कि जब सब कुछ होगा पर अपने ना होंगे । ऐसी कामयाबी नाम शोहरत किस काम की जहां अपनों का साथ ना हो तो आओ फिर से अपने आशियाने को एक नए सिरे से सजाएं अपनों के प्यार व साथ से भरपूर घर बनाएं ।
बहुत ही सुंदर
Amazing post!
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