अंतर्द्वंद- मन का अंधकार करें दूर

 आज  संसार  का  हर  व्यक्ति  दुविधा  से  ग्रस्त  है  क्योंकि  वह  सिर्फ  निजी  स्वार्थ  के  बारे  में  सोचता  है  लेकिन अपने  लिए  सारी  सुख – सुविधाएं  जुटा  लेने  के  बावजूद  वह  अंदर  से  खालीपन  महसूस  करता  है | आज हमारे  पास  भौतिक  सुख-सुविधाओं  के  हजारों  विकल्प  मौजूद  हैं  और  गहरी  आसक्ति   की  वजह  से  वह कुछ  भी  छोड़ने  को  तैयार  नहीं  होता  इसी  वजह  से  मनुष्य  घर  बाहर  हर  जगह  अंतर्द्वंद  का  शिकार  होता रहता  है। उसके  मन  में  नकारात्मक  भावनाएं  घर  कर  जाती  हैं | ज्यादातर  लोग  अपनी  दुविधा  के  लिए  दूसरों  को  जिम्मेदार  ठहराते  हैं  लेकिन  इसकी  जड़ें  उसके  अंतर्मन  में  ही  छिपी  होती  हैं  और  रोजमर्रा  की जिंदगी  में  सभी  को  अक्सर  इस  सवाल  का  सामना  करना  पड़ता  है  कि  मेरा  निर्णय  सही  है  या  नहीं , ऐसी स्थिति  में  द्वंद  का   होना  भी  स्वाभाविक  है  पर  कुछ  लोग  ऐसे  सवालों  का  हल  बड़ी  आसानी  से  निकाल  लेते  हैं  और  कुछ  उसी  में  उलझे  रहते  हैं।                                      कहां  छिपी  है  जड़े – जन्म  के  साथ  ही  पूरा  परिवार  शिशु  की  देखभाल  में  जुट  जाता  है |   इस  दौरान  माता  पिता  उसकी  हर  भौतिक  आवश्यकता  को  पूरा  करने में  लगे  रहते  हैं  लेकिन  उसके  मन  की  ओर  से  ज्यादा  ध्यान  नहीं  देते  जबकि  इंसान  के  व्यक्तित्व  पर बचपन  के  अनुभवों  का  असर  ताउम्र  नजर  आता  है।                                                                 आज  के  माता – पिता  अपने  बच्चों  से  बहुत ज्यादा  उम्मीदें  रखते  हैं  हमेशा  दूसरों  की  तुलना  करके  वे  उन्हें  हीन  भावना  से  ग्रस्त  कर  देते  हैं |  वहीं  कुछ  लोग  अपने  बच्चों  की  परवरिश  अति  संरक्षण  भरे  माहौल  में  करते  हैं  दोनों  ही  स्थितियां  उनका  आत्मविश्वास  कमजोर  कर  देती  हैं  और  बड़े  होने  के  बाद  भी  वह  दुविधा  ग्रस्त  नजर  आते  हैं। इसका नकारात्मक  प्रभाव  यह  भी  होता  है  कि  परिवार  के  प्रति  उसके  मन  में  विद्रोह  की  भावना  पैदा  होने  लगती  है |   मनोवैज्ञानिकों  के  अनुसार  दमित  इच्छाएं  भी  अंतर्द्वंद  के  लिए  जिम्मेदार  होती  हैं  उनके  मन  में  नैतिकता और  इच्छाओं  को  लेकर  निरंतर  संघर्ष  चलता  रहता  है | अगर  माता-पिता  का  सही  मार्गदर्शन  मिले  तो  उन्हें  ऐसे  अंतर्द्वंद  से  बचाया  जा  सकता  है।

         
  
अध्यात्म  के  मार्ग पर  चलें – जीवन  में  सफलता  के  लिए  मन  में  छिपे  अंतर्द्वंद – मन  का  अंधकार  व   निराशा  को  दूर  करना  बहुत  जरूरी  है , यह  तभी  संभव  है  जब  हम  ईश्वर  के  प्रति  सच्ची  आस्था  रखें  और  पूर्ण  समर्पित  भाव  से  अध्यात्म  के  मार्ग  पर  चलते  रहें।  गीता  में  कृष्ण – अर्जुन  संवाद  के  माध्यम  से  मानव  मन  की  दुविधा  का  चित्रण  और  उसके समाधान  को  बहुत  ही  अच्छे  ढंग  से  समझाया  गया  है |  आज  का  व्यक्ति  अर्जुन  की  तरह  जीवन  के  सभी  मोर्चों  पर  अनगिनत  सवालों  से  जूझ  रहा  होता  है  पर  अपनी  समस्याओं  को  ना  पहचान  पाने  की  वजह  से वह  हमेशा  दुखी  रहता  है |  ऐसी  ही  दुविधा  से  ग्रस्त  अर्जुन  को  समझाते  हुए  गीता  में  श्रीकृष्ण  ने  कहा  है  कि  जब  तक  कर्म  ज्ञान  पर  आधारित  नहीं  होगा  तब  तक  ना  तो  सफलता  मिलेगी  नहीं  आंतरिक  शांति। अगर  मन  में  जीत  की  आकांक्षा  हो  तो  पहले  अपने  मन  में  अहम्   को  मारना  होगा  क्योंकि  सभी  दुखों  का  कारण  वही  है |  भौतिक  सुख  सुविधाएं  क्षणिक  हैं  इसलिए  धन  दौलत  के  पीछे  भागने  की  बजाय  हमें  मानसिक  शांति  को  अपने  जीवन  का  लक्ष्य  बनाना  चाहिए , जो  कि  परमात्मा  की  सच्ची  भक्ति  से  ही  मिलती  है ।

Similar Posts

15 Comments

Leave a Reply