हर समस्या का समाधान मंत्र

समस्याएं  सब  की  जिंदगी  में  आती  हैं  कभी  छोटी  तो कभी  बड़ी  , लेकिन  समस्याओं  को  हम  किस  रूप  में देखते  हैं  यह  ज्यादा  महत्वपूर्ण  है   । हम  परिवार  में और  मित्रों  के  बीच  इसी  बात  का  रोना  रोते  हैं  कि उनकी  समस्याएं  कितनी  बङी  थी  और  धीरे -धीरे  हमारा मन  समस्याओं  में  रहने  लगता  है  ,एक  समस्या  खत्म होने  के  बाद   हमारा  मन  दूसरी  समस्या  ढूंढने  लगता  है  समस्या  ना  हो  तो  भी  खालीपन  सा  लगता  है।                                     जीवन  में  समस्याओं  से  सामना  होना  तो  तय  है लेकिन  उसका  दुख  मनाना  या  ना  मनाना  समस्याओं  को  हल  करना  आपके  हाथ  में  है आपको  समझना  होगा  कि  हम  समस्याओं  को  हल करने  की  तरफ  देख  रहे  हैं , या  उनसे  हिम्मत  हार रहे  हैं  अक्सर  घर  या  ऑफिस  में  हम  समस्याओं  की  शिकायत  करते  के  साथ  देखे  जाते  हैं  उसे  हल करने  के  नजरिए  के  साथ  नहीं  यह  एक  ऐसा  घेरा है  जिसमें  हमें  हल  की  तरफ  देखना  चाहिए   ।                           हम  समस्या  का  सामना  चिंता  और आशंका  के  साथ  करते  हैं  उसे  बड़ा  बना  देते  हैं , कई  बार  हम  समस्याएं  खुद  ढूंढते  हैं  यह  हमारे व्यक्तित्व  का  कमजोर   हिस्सा  होता  है  , जिंदगी  में समस्याएं  हल  करने  के  लिए  साहस  की  जरूरत होती  है  हमें  वह  साहस  चाहिए  , समस्याएं  खुद  ही खत्म  हो  जाएंगी  ।                                                                      यह  आधुनिक  समय  में  ही  नहीं  बल्कि हमेशा  ही  होता  रहा  है  इसका  विश्लेषण  करें  तो कोई  समाजशास्त्री  इसे  सामाजिक  बीमारी  कहेगा  तो  कोई  मानसिक  बीमारी  ,  कोई  इसकी  चपेट  में अपने  आसपास  के  माहौल  से  आ  जाता  है  तो किसी  में  परिवार  की  देन  होती  है  तो  कोई जन्मजात  भी  हो  सकता  है  लेकिन   एक  बात  तय है  कि  यह  एक  बीमारी  है  जो  दवा  से  ठीक  नहीं होती ,  अपनी  सोच  समझ  को  विकसित  करने  और अपने  मन  पर  काबू  रखने  से  ही  इसे  बचा  जा सकता  है  ।                                                                              कहीं  ना  कहीं  हम  सभी   सब  कुछ  मिलने  के  बाद  भी  जीवन  में  आभार  प्रकट  करना बंद  कर  देते  हैं  जहां  छोटी- छोटी  चीजों  पर  खुशियां  मनाते  थे  अब  हम  ऐसा  नहीं  करते  बल्कि उन्हें  छोटी  बात  मानकर  छोड़  देते  हैं  फिर  चाहे  वह अपनों  के  लिए  समय  देना  हो  या  खुद  को  समय देकर  रिफ्रेश  करना  हो  अपनी  खुशियों  को  छुपाना दूसरों  के  साथ  शेयर  ना  करना ,  अपने  में  ही  सिमट  कर  रहना  या  फिर  यह  कहना  कि  हमारी  तो  किसी  को  जरूरत  ही  नहीं  है  और  फिर  इसे अपने  मन  मे  बिठा  लेना  भी  एक  तरह  से  असंतोष ही  माना  जाएगा ।
  1. सोच  को  सकारात्मक  रखें   –  कुछ  लोग  जिंदगी में  सभी  कुछ  जैसे  अच्छा  स्वास्थ्य  धन  दौलत रिश्ते  नाते  समाज  में  अच्छी  पैठ ,  स्थाई  नौकरी वगैरह  होने  के  बावजूद  हर  वक्त  शिकायत  करते नजर  आते  हैं ,  कभी  ऊपर  वाले  से  कभी  घर वालों  से  कभी  अपने  कार्य  स्थल  पर  लोगों  से ऐसे  लोगों  में  कृतज्ञता  की  कमी  होती  है  वह आभार  जताना  भूल  जाते  हैं  उस  परमपिता परमेश्वर  का  जिसने  उन  पर  इतनी  कृपा  की  है जहां  संतोष  नहीं  वहां  सुख  का  अनुभव  होना मुश्किल  है  , दूसरा  कारण  दुखी  रहने  का  यह  है कि  लोग  लालच  लालसा  से  ग्रसित  होते  हैं  थोड़ा  और  थोड़ा  और  जीवन  के  हर  क्षेत्र  में  उन्हें  थोड़ा  और  खींच  होती  है  यही  थोड़ा  और मिलना  उनके  सुखी  रहने  की  शर्त  होती  है  संक्षेप  में  यही  कहना  चाहूंगी  कि  सुख  या  दुख अनुभव  करना  यह  आपकी  सोच  आपकी मानसिक  अवस्था  पर  निर्भर  करता  है  आप अपनी  सोच  को  सकारात्मक  व  आशावादी  रखें। यह  सोच  की  आज  अभी  इस  पल  में  हम  लाखों  करोड़ों  लोगों  से  बहुत  बेहतर  स्थिति  में  है  और  अगर  तुलना  करनी  है  तो  अपनी  तुलना अपने  से  काम  पाने  वालों  से  करें  यकीन  माने आप  स्वयं  को  बहुत  ज्यादा  सुखी  पाएंगे ।

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