रिश्तो की मजबूती का मनोविज्ञान
हर रिश्ते की बुनियाद सच्चाई , प्यार, विश्वास, आपसी सामंजस्य होता है । ईमानदारी बहुमूल्य है जो कि मजबूत , खुश और ताउम्र टिकने वाले रिश्ते के आधार हैं , याद रखें झूठ ज्यादा समय तक नहीं चल पाता और एक न एक दिन खुद ब खुद सामने आ जाता है । पश्चिम की हवा है निराली – इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहेंगे कि पश्चिमी लोगों को हमारे देश की हवा में रची बसी संस्कृति ही इस ओर खींचती हैं इसके विपरीत यहां के बाशिंदे होकर भी हमें यही परंपराएं रूढ़िवादिता और खोखले होने की मिसाल लगती हैं , लेकिन हम हिंदुस्तानियों को उनके खुलेपन की यही अदा इतनी लुभाने लगती है कि हम रिश्तो को लेकर भी कुछ ज्यादा ही व्यवहारिक हो गए हैं । अच्छा लगा तो ठीक वरना बिना एडजस्ट किए रिश्तो को रफा- दफा करना भी सीख लिया है । रिश्तो में सोशल साइट्स की भूमिका – वैश्वीकरण का प्रभाव सीधे तौर पर रिश्तो पर पड़ा है इसे और भी ज्यादा सशक्त बनाने की भूमिका निभाई है सोशल साइट्स ने , फेसबुक तो आज के युवाओं के आम जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है , मनोवैज्ञानिकों की मानें तो आज की युवा पीढ़ी वक्त से पहले ही सब कुछ पा लेने की चाह में हर जगह परफेक्शन की तलाश करती है , प्रेम संबंधों के मामले में भी उनका रवैया आक्रामक है , सोशल साइट के जरिए थोड़े दिनों की बातचीत में जरा – जरा सी बात से मतभेद हुआ तो संबंध को नकारने में उन्हें जरा भी देर नहीं लगती सीधे तौर पर रिश्तो में समझौता उन्हें पसंद नहीं , इसके अलावा अपने पार्टनर के प्रति अपनी भावनाएं , व्यक्तिगत तस्वीरें आदि को सोशल साइट के ऊपर दूसरों से शेयर करने में भी वे जरा भी नहीं हिचकते हैं । आज की जनरेशन बोल्ड है खुलकर अपनी स्वीकृति पर मुहर लगाती है , परंतु प्रेम एक अत्यंत व्यक्तिगत मामला है ऐसे में पल – पल की प्रेम अभिव्यक्ति के लिए सोशल साइट्स को जरिया नहीं बनाए तो बेहतर होगा | रिलेशनशिप , प्रेम , मतभेद आदि को सार्वजनिक करना रिश्तो को कमजोर बनाता है और इस बात को आज की युवा पीढ़ी को समझना होगा ।
Sachchai… Riahton k buniyaad ki neev… Agar wahi gayab hi jae ek rishte se to rishta khokhla ho jata hai… Aj nahi to kal toot hi jaega