भारतीय संस्कृति और समाज

संस्कृति  व  सभ्यता , मनुष्य  को  अन्य  मनुष्यों  से  व  समूहों  को  अन्य  समूहों  से  अलग  करती  है , संस्कृति  वह  जटिल  संपूर्णता  है  जिसमें  विश्वास , कला , आचार , कानून  और  सभी  आदतों  का  समूह  है , कोई  देश  जब  अपनी  सांस्कृतिक  जड़ों  से  उन्मुक्त  होने  लगता  है  तो  भले  ही  बाहर  से  वह  बहुत  सशक्त  और  स्वस्थ दिखाई  दे  परंतु  भीतर  से  मुरझाने  लगता  है ।                                                  भारतीय  संस्कृति  की  प्रमुख  विशेषता  है  दीर्घकालीन  स्थायित्व , इसमें  निरंतरता  है  जो  बिना  किसी  विराम  के  गंगा  प्रवाह  के  समान  प्रवाहित  होती  रही  हैं ।                                                            विदेशों  से  अनेक  धाराएं  संस्कृति  के  रूप  में आईं  और  भारतीय  संस्कृति  रूपी  समुद्र  में  मिलकर  विलीन  हो  गई , भारत  में  भाषा ,धर्म ,साहित्य  नीति ,कला , सामाजिक  व्यवस्था , रचनात्मक  जीवन , और  क्रियाकलाप  प्राचीन  काल  से  ही  एक  ही  मार्ग  पर  चले आ  रहे  हैं  जबकि  अन्य  कई  संस्कृतियों  समाप्त  हो  गई ।                          पाश्चात्य  विद्वानों  ने  भारत  को  ” भाषाओं , संप्रदायों , मत  का  अजायबघर  कहा  है “ । गुजरात  से  बंगाल  तक  आकार  व  व्यवसाय , रीति  रिवाज , रहन – सहन  विभिन्नता  में  विद्यमान  हैं  फिर  भी  सब  में  एकता  विद्यमान  है ।                                         यहूदियों  को  भारत  में  शरण  मिली , पारसी , पश्चिमी  यूरोप  के  लोग  भारत  में  आए , पूर्व  मंगोल  बच्चों  का  भी  यहां  आगमन  हुआ  परंतु  कालांतर  में  यह  सभी  यही  घुल  मिल  गए  और  सम्मान  पूर्वक  जीवन  यापन  करने  लगे | भारतीय  संस्कृति  में  धार्मिक  चिंतन  व  जीवन  में  कुछ  ऐसी  विशेषता  है  जो  इसे  अन्य  संस्कृतियों  से  अलग  करने  में  पर्याप्त  है ।                                                  पारसियों  ने  अपना  शरण  स्थल  भारत  में  ही  ढूंढा  था , हजारों  तिब्बती , बाल  निवासियों  और  भिक्षुओं  का  दलाई  लामा  के  साथ  भारत  में  शरण  लेने  आना  तो  बहुत  पुरानी  घटना  भी  नहीं  है  जिसे  भुलाया  जा  सके ।                      भारतीय  प्राचीन  संस्कृति  वट  वृक्ष  के  समान  अपनी  छाया  तले  सैकड़ों  जातियों , जनजातियों , धार्मिक  समुदायों  को  एक  पवित्र  स्पेस  प्रदान  की  थी  जहां  वे  मुक्त  हवा  में  सांस  ले  सकें , वह  केवल  संहिता  की  बात  नहीं  करते  बल्कि  इसके  पीछे  कहीं  यह  मान्यता  काम  करती  थी  कि  विभिन्न  विश्वासों  के  बीच  तत्व  की  सत्ता  समान  रूप  से  क्रियाशील  रहती  है | यदि  भारत  में  सबसे  ज़्यादा  सांस्कृतिक  परंपराएं  आज  भी  मौजूद  है  तो  उसका  मुख्य  कारण , वह  केंद्रीय  आध्यात्मिक  तत्व  है  जिसमें  इतनी  क्षमता  ऊर्जा  थी  कि  इतिहास  के  निर्मम  थपेड़ों  के  बावजूद  वह  समस्त  प्रभावों  को  अपने  भीतर  समाहित  कर  सके , देखा  जाए  तो  वह   विचार  तत्त्व  ही  है  जो  हमारे  राष्ट्रीय  जीवन  की  विपन्नता और  ऐतिहासिक  दुर्घटनाओं  के  बावजूद  इस  देश  को  बचाए  रखने  में  सफल  रहा  है ।

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