किशोरावस्था में बच्चों के बनें बेस्ट फ्रेंड

 किशोरावस्था  की  दहलीज  पर  खड़े  बच्चे  भटकाव  की  राह  पर  न  चल  पड़ें   इसके  लिए  पेरेंट्स  को  उनसे  दोस्ती  करनी  चाहिए  ।                    आजकल  ज्यादातर  माएँ  अपने  बच्चों  को  लेकर  परेशान  नजर  आती  हैं  कि  दोस्तों  से  घंटों  गप्पे  मारेंगे , इंटरनेट  पर  चैटिंग  करते  रहेंगे  पर  हमारे  पूछने  पर , कुछ  नहीं  मम्मी  कहकर  चुप्पी  साध  लेंगे ।  मुझे  अच्छी  तरह  से  याद  है  कि  मेरी  माँ  और  छोटी  बहन  मेरी  सबसे  अच्छी  दोस्त  होती  थी  भले  बुरे  का  ज्ञान  माँ  ही  कराती  थी  और  मेरी  सहेलियों  के  घर  आने  पर  माँ  उनसे  भी  खूब  घुल  मिलकर  बातें  करती  थी  इसलिए  आज  की  पीढ़ी  का  अपने  मां – बाप  के  साथ  व्यवहार  देखकर  मुझे  बड़ी  हैरानी  होती  है ।                                                   वजह  जानना  जरूरी –  किशोर  बच्चों  में  कुछ  बच्चों  का  तो  यही  सोचना  होता  है  कि  मम्मी – पापा  तो  सिर्फ  टोका – टाकी  करते  रहते  हैं , यह  करो , यह  ना  करो , यहां  जाओ , वहां  ना  जाओ , अधिकतर  किशोर  बच्चों  से  बात  करो  तो   यह  बात  समझ  में  आती  है  कि  खेलने , फिल्म  देखने  , मौज – मस्ती  के  लिए  भले  ही  टीनएजर्स  दोस्तों  को   ढूंढते  है  परंतु  जब  किसी  तरह  की  समस्या  उनके  सामने  आती  है  तो  वे  बेहिचक  जिस  तरह  अपनी  मां  के  पास  जा  सकते  हैं  उस  तरह  पापा ,  भाई  व  दोस्त के  पास  भी  नहीं  जा  सकते  ऐसे  में   माँ   ही  उनकी  गाइड  होती  है  और  बेस्ट  फ्रेंड  भी ।                            तो  फिर  ज्यादातर  किशोर  किशोरावस्था  में  अपनी  माँ  से  दोस्ताना  रिश्ता  कायम  क्यों  नहीं  कर  पाते , सच  तो  यह  है  कि  इस  प्रभावात्मक  अवस्था  में  आज  के  बच्चे  यह  मानकर  चलते  हैं  कि , आज  के  हिसाब  से  वह  सब  कुछ  जानते  हैं  और  उनकी  माँ  कुछ  नहीं , कुछ  किशोरों  का  तो  यह  विचार  होता  है  कि  मम्मी  जमाने  के  हिसाब  से  चलने  को  तैयार  ही  नहीं  है  ,अच्छे  कपड़े  पहन  कर  कॉलेज  जाना , फोन  पर  दोस्तों  से  लंबी – लंबी  बातें  करना , महीने  में  कम  से  कम  एक  बार  दोस्तों  के  साथ  मूवी  जाना , या  रेस्टोरेंट  जाना , कितना  वक्त के  साथ  चलने  के  लिए  जरूरी  है  यह  सब  मम्मी  नहीं  समझती । पिज़्ज़ा , बर्गर , मैकडॉनल्ड  के  बर्गर  का  स्वाद  मम्मी  क्या  समझेगी ।                                                                                             गलती  माता – पिता  की  भी – ईमानदारी  से  देखें  तो  आज  की  तेज  रफ्तार  जिंदगी  में  मां – बाप  शोहरत , रुतबा  पूरा  करने  की  होड़  में  तो  भाग  रहे  हैं   पर  अपने  बच्चों  के  मन  से  संस्कारों  के  बजाय  पैसे  की  प्रधानता  और  उम्र  से  पहले  बड़प्पन  पैदा  कर  रहे  हैं | पुराने  जमाने  में  बच्चे  संयुक्त  परिवारों  में  पढ़ते  थे , हर  चीज  भाई  बहनों  से  शेयर  की  जाती  थी  आज  एकल  परिवारों  में  एक  या  दो  बच्चे  होते  हैं  बच्चों  पर  मां  का  प्रभाव  सबसे  ज्यादा  पड़ता  है  बेशक  पहले  के  मुकाबले  मां  और  बच्चे  में  लगाव  बढ़ा  है , पहले  से  ज्यादा  इंटेंस  भी  हुआ  है , आज  के  किशोरिया  जरूर  चाहते  हैं  कि  माएं  उन्हें  समझें , उनकी  जरूरतें  समझे , पर  मांओं  की  भी  उनसे  कुछ  अपेक्षाएं  हैं  यह  समझने  के  लिए  तैयार  नहीं  होते ।                                     
            आज  की  पीढ़ी  ने  आंखें  ही  उपभोक्तावाद  के  माहौल  में  खोली  हैं  आज  के  बच्चे  जब  मां  को  यह बताएं  कि  आप  को  किस  तरह  से  तैयार  होकर  कौन  सी  ड्रेस  पहन  कर  हमारे  स्कूल  आना  है  तो  आप समझ  सकते  हैं  कि  बच्चों  का  माता – पिता  पर  कितना  दबाव  है । नई  पीढ़ी  द्वारा  अपनी  बातें  माओ  से शेयर  ना  करने  के  लिए  कुछ  हद  तक  माएं  खुद  ही  जिम्मेदार  हैं , नौकरी  पेशा  माएं  बच्चों  को  वक्त  ना  दे पाने  की  मजबूरी  को  उन्हें  ज्यादा  से  ज्यादा  सुविधाएं  देकर  छिपाने  की  कोशिश  करती  हैं । अच्छी  देखभाल का  मतलब  अब  अच्छा  खाना , पीना , दिखना  रह  गया  है | बच्चों  में  अच्छे  जीवन  मूल्य  डालना  अब  अच्छे लालन – पालन  का  हिस्सा  नहीं  रह  गया  है ।                                                                                        बच्चों  की  भी  सुने – माता  पिता  दोनों  के  कामकाजी  होने  की  वजह  ने  भी  बच्चों  की  सोच  पर  असर  डाला  है  कामकाजी  माता – पिता , समय – समय  पर  बच्चों  को  यह  एहसास  दिलाते  रहते  हैं  कि  वह  बड़े  हो  गए  हैं  स्वाभाविक है  कि  बच्चे  भी  बड़ों  की  तरह  व्यवहार  करने  लगे , ऐसी  हालत  में  बच्चों  के  बचपन  के  साथ – साथ  बाल , सुलभ , भोलापन  खो  गया  है | माता – पिता  अपनी  टूटी – बिखरी ,  इच्छाओं  और  आकांक्षाओं  को  बच्चों  के  जरिए  पूरा  करना  चाहते  हैं , ऐसे  हालात  में  क्या  जरूरी  नहीं  कि  माता – पिता  अपने  बच्चों  को  जो  चाहे  दे  पर  साथ  ही  अपना  बहुमूल्य  समय  भी  उन्हें  अवश्य  दें । आखिरकार  वे  आपके  बच्चे  हैं  उनके  किशोरावस्था  में बढ़ते  कदम  आपकी  सांसों  के  साथ  जुड़े  हैं  इसलिए  आपको  उनका  दोस्त  बनना  सीखना  होगा  और  इसके  लिए  यह  बहुत  जरूरी  है  कि  आप  उन्हें  बराबरी  का  सम्मान  दें  उन्हें  गलत  और  सही  का  ज्ञान  करवाएं  कुछ  उनकी  माने  और  कुछ  अपनी  मनवाए ।                                                                       बच्चों  को  माताएं   स्वयं  सिली , स्टुपिड , इडियट  जैसे  विशेषण  से  पुकारती  हैं  और  फिर  जब  वही  अल्फाज  बच्चों  के  मुंह  से  निकलते  हैं  तो  उन्हें  डांटते  हैं  इससे  अच्छा  होता  कि  हम  खुद  अपनी  जबान  पर  कंट्रोल  करें ।  बच्चों  के  साथ  दोस्ताना  व्यवहार  उनके  साथ  बिताया  गया  समय  भले  ही  वह  क्वालिटी  टाइम  बहुत  कम  हो  उन्हें  आप  से  उनके  रिश्ते  की  कद्र  समझाएगा  और  तब  आप  स्वयं  अपने  बच्चों  की  फ्रेंड , फिलॉस्फर  और  गाइड  होंगी ।          

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