बड़े बुजुर्ग – समय दान की जरूरत
आज की पीढ़ी अपनी कामकाजी जिंदगी में इतनी व्यस्त है कि उसके पास समय नहीं है । पढ़ाई लिखाई और करियर की चिंता ने आज की पीढ़ी की व्यस्तता को इतना बढ़ा दिया है कि अपने परिवार के साथ बैठने का उसके पास समय ही नहीं बचा है , रोजी- रोटी की चिंता ने युवाओं को घर से बाहर ऐसा निकाला कि कई बार वे सिर्फ बाहर के ही होकर रह जाते हैं , वास्तव में एकल परिवारों का चलन भी इसलिए बढा , और इसका सबसे अधिक अगर किसी वर्ग पर प्रभाव पड़ा तो वे थे परिवार के बरगद यानी घर के बड़े बुजुर्ग । संयुक्त परिवारों के ढलान ने बुजुर्गों को अकेला कर दिया , पूरा जीवन अपने घर परिवार को देने वाले जब बुजुर्ग हो गए तो उन्हें किसी का साथ नहीं मिला , उन्होंने भले अपने परिवार को पूरा वक्त दिया हो लेकिन उन्हें कुछ समय देने को कोई तैयार नहीं दिखता , कहीं मजबूरी तो कहीं मोबाइल की धुन, कहीं जिंदगी की रेस तो कहीं आत्म केंद्रित स्वभाव की वजह से बुजुर्गों को देखने वाला घर में कोई नहीं होता । वक्त की कमी बड़ी वजह – महानगर की भागमभाग वाली जिंदगी के लिए 24 घंटे भी कम पड़ते हैं , कई परिवारों में तो रोजमर्रा के घरेलू कामकाज भी लटके पड़े रहते हैं , उनके पास अपने लिए ही समय नहीं है ऐसे में वह घर के बुजुर्गों के पास बैठने के पल कहां से निकाले ,और वहीं कामकाजी महिलाओं की अपनी व्यस्तता और घरेलू महिलाओं की अपनी जिम्मेदारियां हैं लेकिन तब भी यानी दिनचर्या को व्यवस्थित करके और सारे कार्यों में से कुछ वक्त चुराया जाए तो , बुजुर्गों के लिए कुछ समय तो निकाला ही जा सकता है । जहां चाह वहां राह – बुजुर्गों के अकेलेपन की दिक्कत पूरी दुनिया में है , वैश्विक स्तर पर आबादी बढ़ी तो समस्याएं भी बढी , जिसमें एक बड़ी समस्या बुजुर्गों की भी है , पूरी जिंदगी काम करने के बाद आराम करने , चैन की सांस लेने , और अपने अनुभव अगली पीढ़ी को देने की आस में उन्होंने अपना सारा समय लगा दिया लेकिन जीवन संध्या में उनके पास बैठने वाले , उनसे बातें करने वाले और उनके साथ खाना खाने वाले परिवार के लोग ही उनसे दूर हो गए । बुजुर्गों की समस्याओं के लिए कई देशों ने समाधान खोजना शुरू किए हैं ,भारत सरकार ने भी बुजुर्गों के हित में कई तरह की पहल की है , अब सरकार का यह विचार कब हकीकत की जमीन पहुंचेगा यह तो अपनी जगह है , लेकिन मशीनों के उपभोग से हम थोड़ा बाहर निकले तो परिवार के उन बुजुर्गों को अपना समय दे सकते हैं जिसकी उन्हें जीवन के उत्तरार्ध में सबसे अधिक जरूरत होती है । उनको खुश करने का सबसे अच्छा उपाय उनके साथ समय बिताना ही है । आज हम घर पर रहकर भी अपने- अपने कमरों मे सीमित रहते हैं , मोबाइल फोन के जरिए एक दूसरे से चैट करते हैं , लेकिन घर में बैठे बुजुर्गों के लिए समय नहीं निकालते , आखिर बुजुर्गों को हमसे क्या चाहिए उन्हें केवल हमारे समय की ही इच्छा तो होती है , यह बहुत जरूरी है सोचने की कि अब समय दान की जरूरत है अपनी जड़ यानि परिवार के बुजुर्गों के लिए ।
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