कावड़ यात्रा – आस्था और भक्ति
कावड़ यात्रा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी पहले थी , समाज में फैली बुराइयों के विष को दूर कर पॉजिटिव सोच पैदा करने का प्रतीक है यह कावड़ यात्रा । सावन का महीना आते ही समूचा भारत जैसे शिवमय हो जाता है , गंगा नदी से गंगाजल लाकर कंधे पर कावर उठाए नंगे पैर लंबी दूरी तय करते हुए कांवरयों के झुंड आप हर साल देखते हैं । कावड़ के रूप रंग – भगवा रंग से रंगी बांस की कावड़ को कावड़िए अलग अलग तरीके से सजाते सवारते थे , कुछ पर गुब्बारे तो कुछ पर छोटे -छोटे नकली पक्षी लगे होते हैं , केसरिया रंग के अलावा भी कई रंगों से सजी होती है । कावड़ की कहानी – कांवड़ यात्रा कब से शुरू हुई इस बारे में कहा जाता है कि सावन के महीने में देवताओं और राक्षसों ने मिलकर समुद्र मंथन किया , समुद्र मंथन के दौरान समुद्र में से 14 अनमोल रत्न और अमृत निकले जिन्हें देवताओं और राक्षसों ने आपस में बांट लिया , लेकिन जब विष निकला तो उसे किसी ने ग्रहण नहीं किया विष के ताप से तीनों लोक जलने लगे , तब शिव ने उसे पी लिया , विष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया और शरीर भयानक रूप से जलने लगा ,ताप कम करने के लिए चंद्रमा को उनकी जटाओं पर स्थित किया गया लेकिन फिर भी कोई लाभ नहीं हुआ इसके बाद सभी देवताओं और राक्षसों ने मिलकर गंगाजल से महादेव का अभिषेक किया जिसकी शीतलता से उनके शरीर का ताप कम हुआ और विष का दुष्प्रभाव भी दूर हो गया , कहा जाता है तब से ही सावन में गंगाजल लाकर शिव जी का अभिषेक करने की परंपरा शुरू हो गई ,आज लाखों – करोड़ों की संख्या में कांवड़िए इस परंपरा का पालन करते हैं ।
कावड़ यात्रा के नियम – कावड़ यात्रा सुनने में आज इतनी आसान लगती है ,उतनी है नहीं । हर कावड़िया को इस रात यात्रा के दौरान कुछ नियमों का पालन करना होता है जैसे – * पूरी यात्रा के दौरान कावड़ को जमीन पर नहीं रख सकते , इसलिए शिविरों में कांवड़ रखने के लिए खास तौर से टेंट्स बनाए जाते हैं । * अपनी कावड़ से 1 इंच भी आगे भी नहीं जा सकते , इसलिए विश्राम के दौरान कावड़ रखने का पूरा ध्यान रखा जाता है । * इसे अगर दूसरे को देना है या स्टैंड पर रखना है तो यह सिर से उठ के ऊपर से नहीं गुजरनी चाहिए ,कावड़ के नीचे से कोई बच्चा या कुत्ता नहीं गुजरना चाहिए ऐसा होने पर वह जल शिवजी को अर्पित नहीं किया जा सकता । कावड़ियों को फिर से कावड़ भरकर लानी होगी ,कुत्ते को काल भैरव का वाहन माना जाता है जिसके स्पर्श से जल अशुद्ध हो जाता है । * कांवरियों को इस दौरान सात्विक भोजन और जीवनशैली का पालन करना होता है , जुआ , शराब या सिगरेट जैसे व्यसनों से दूर रहना होता है ,यात्रा के दौरान कावड़ियों के लिए साज श्रृंगार का प्रयोग करना मना होता है । * पहले यह भी माना जाता था कि जिस घर से कोई व्यक्ति कावड़ लेने गया हो तो उस घर में सब्जी में छौक नहीं लगाई जाएगी , हालांकि अब इस नियम का इतनी सख्ती से पालन नहीं किया जाता । मॉडर्न रंग रूप – समय बदलने के साथ – साथ अब कावड़ यात्रा के स्वरूप में भी कई बदलाव आए हैं, पहले से बेहतर सुविधाएं शिविरों में बढ़िया खाना पीना और पुलिस के इंतजाम इन दिनों चप्पे- चप्पे पर मिलता है कावड़ियों का फैशन भी वक्त के साथ बदल रहा है धोती कुर्ते व कुर्ते पजामे की जगह टीशर्ट बरमूडा कार्गो पैंट ने ले ली है । 1 महीने पहले से ही केसरिया रंग की भोले बाबा की चित्र वाली टी- शर्ट बननी शुरू हो जाती हैं, कुछ पर संस्कृत के श्लोक लिखे रहते हैं तो कुछ बरमूडा में लोग 6 से 7 पॉकेट तक बनाने की डिमांड करते हैं ताकि अपना मोबाइल पैसे और कीमती सामान हिफाजत से रख सकें ।