आज का समाज – नैतिक कर्तव्य

आज  हम  जाने  अनजाने  अपनी  कर्तव्य  और  भूमिकाओं  के  निर्वाह  में  कहीं  ना  कहीं  असफल  हुए  हैं  ,  स्त्री  हो  या  पुरुष  उसने  अपने  स्वार्थ  को  केंद्र  में रखकर  व्यवस्थाओं  को  संभाला  है ,  आज  जो  भी वातावरण  है  उसके  जनक  हम  खुद  ही  हैं  ।                                                                                                                                     हमारे  मन  में  चलने  वाली  विचारों  ने  हमे  ऐसी  स्थितियों  मे  खड़ा  कर  दिया  है  । आसपास  किसी  भी आयु  , लिंग  या  वर्णन के  लोग  हो  उदंडनता  और  व्यभिचार   करने  से  बाज  नहीं  आते  , ऐसा  नहीं  की कोई  एक  ऐसा  अपराध  के  लिए  दोषी  है ,   बल्कि  जो भी  अपराध  करता  है  उसके  संगी ,  साथी  दूसरे  लिंग और  आयु  के  लोग  ही  होते  हैं  , जो  कभी  अपराधी  के सहायक  या  सहयोगी  बनते  हैं  तो  कभी  अपराधिक हरकतों  पर  पर्दा  डालते  हैं ।
जहां  तक  उदंड  लड़के –  लड़कियों  का सवाल  है  उन्हें  यही  नहीं  पता  कि  जो  माता -पिता  उन्हें समर्थ  और  विवेकी  बनाने  के  लिए  कड़ी  मेहनत  कर  रहे  हैं ,  उन्हें  ही  धमकी  देकर  वे  पल  भर  में  साथी  मित्र  के  साथ  चले  जाते  हैं  जो  कि  खुद  अभी  अविवेकी  और  असमर्थ  है  , ऐसे  युवा  स्वयं  को  बहुत परिपक्व  को  मानते  हैं  अगर  उनके  निर्णय  कितने  उथले  हैं  ,  विषम  परिस्थितियों  में  उन्हें  शायद  खुद  ही महसूस  होता  होगा ।   तभी  अलगाव  के  बाद  लड़का  हो  या  लड़की  माता- पिता  के  सामने  बचाने  के  लिए गिड़गिड़ाते  नजर  आते  हैं  ,  ऐसे  में  उन्हें  हारे  हुए  माता- पिता  की  पीड़ा  समझ  नहीं  आती ,  जिसको  वह पर्सनल  स्पेस  के  नाम  पर  बताते  हैं ।
आज  समाज  गर्त  में  जा  रहा  है  और  बार- बार प्रश्न  खड़े  होते  हैं  हम  क्या  करे ,  व  हमारे  नैतिक  कर्तव्य     क्या  हो  , प्रभुत्व और  विवेकी वर्ग  से  आग्रह  है  कि  उठिए  और  आसपास  के वातावरण  पर  पैनी  दृष्टि  रखिए,  जितना  लोगों  को जागृत  कर  सकते  हैं  करिए  ,  यह  सच  है  कि  किसी अपराधी  के  छोटे  अपराधों  को  ढकना  उसे  बड़े  अपराधों  के  लिए  तैयार  करना  होता  है  , ऐसा संवेदनशील  समाज  सिर्फ  डराने  का  काम  कर  सकता  है ।

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