स्वयं को जानने की कला
स्वयं को जानने की कला आत्म प्रतिस्पर्धा से ही आती है , यह जीवन में रंग , खुशियां और उमंग भरने की कला , स्वयं का आत्मिक सौंदर्य निखारने की भी कला है । वर्तमान समय प्रतिस्पर्धा का समय है किंतु यदि यह प्रतिस्पर्धा दूसरों से ना करके स्वयं से की जाए तो कितना अच्छा हो स्वयं से प्रतिस्पर्धा और आत्म चिंतन करके हम स्वयं का निर्माण तो करते ही हैं हमारे द्वारा स्वयं का आत्ममंथन भी हो जाता है । आज मानव अपने दुख से दुखी नहीं बल्कि दूसरों के सुख से दुखी है । अपनी आशाओं और इच्छाओं को पाने के लिए स्वयं से प्रतिस्पर्धा करें स्वयं से प्रतिस्पर्धा द्वारा जीवन में नित नए रंग भर के एक नया आकार नवीन संरचना रखें , एक नई सोच , एक नई पहल से आप एक नए जीवन में प्रवेश करेंगे कल्पना से परे स्वयं को जानने का आभास करेंगे ।
जब हम दूसरों से प्रतिस्पर्धा करते हैं तब हमारे ह्रदय के भीतर एक निष्क्रिय सोच का निर्माण तो होता ही है साथ में नकारात्मक सोच भी बढ़ती है जो हमें अन्दर से पूरी तरह नष्ट कर देती है । हमारी गलत सोच उस कुल्हाड़ी की भांति है जिसको हम अपने ही पैरों पर मार रहे हैं और स्वयं को पथ भ्रमित कर रहे हैं । स्वयं को जानने की यह नवीन प्रतिस्पर्धा जीवन रूपी कैनवस पर नई- नई आकृतियों को कॉल करने का कार्य तो करेगी यह साथ में जीवन की उपलब्धि दूसरों को भी आकर्षित और प्रभावित किए बिना नहीं रह पाएगी , इसलिए जीवन में किसी भी क्षेत्र में अगर आप स्वयं से प्रतिस्पर्धा करती हैं तो आपकी जीत पक्की और सुनिश्चित है ।