रिश्तो में भावनाओं की अहमियत
रिश्ते , अगर इसमें हम एक दूसरे की भावनाओं को अहमियत नहीं देंगे तो रिश्ते की नींव डगमगा जाएगी | प्रेम की इस आनंदित दुनिया में एक दूसरे के प्रति समर्पण ही उनके विश्वास को मजबूत बनाता है लेकिन क्या यह बातें मौजूदा वक्त के संबंधों की व्याख्या करता है शायद नहीं , इसलिए नहीं क्योंकि आज प्रेम ने शायद वह दर्जा खो दिया है | दोयम दर्जे में डगमगाता आज का प्रेम संबंध मांग , शर्त , मतभेद की नींव पर खड़ा होता है लेकिन सिर्फ ऐसे ही संबंधों की भरमार हमारे पास नहीं है बल्कि कुछ समर्पित संबंधों की कहानियां भी मौजूद है प्रेम संबंधों में नफा नुकसान वाला रवैया इस कदर हावी हो चला है कि मौजूदा वक्त में प्रेम संबंधों की स्थिति हास्यास्पद सी हो गई है । अति व्यवहारिक होना – मनोचिकित्सक डॉक्टर निशा खन्ना के अनुसार – विभिन्न शर्तों पर शुरू होने वाले प्रेम संबंधों में आज व्यवहारिकता भावनाओं से आगे हैं आपकी जरूरत विचार जैसी चीजें अगर पार्टनर से हासिल नहीं होती तो संबंध खत्म होने की कगार पर पहुंच जाता है यानी आज प्रेम संबंधों में जरूरत ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है इसे व्यवहारिकता की हद ही कहेंगे कि प्रेमी – प्रेमिका , पति – पत्नी के बीच प्रेमसूत्र इतना कच्चा हो गया है कि एक मामूली झटका भी संबंधों को बिखरने से नहीं बचा पाता है संबंधों का यही खोखला पन रिश्तो को खत्म कर देता है । संबंधों को लेकर खुलापन – आज की पीढ़ी हर संबंध को लेकर विचारों में अत्यधिक खुलापन रखती है खुले रुप से रिश्तो को स्वीकृति देती है यही नहीं एक से अधिक प्रेम संबंध , विवाहेतर संबंध , लिव इन रिलेशनशिप जैसे संबंधों को युवा खुले रूप से स्वीकार कर रहे हैं उनका यह बोल्डनेस और विचारों में आए खुलापन ने भावनाओं को पीछे धकेल दिया है हर वह रिश्ता जहां प्रेम को महत्व दिया जाता है वहां भावनाएं मायने रखती हैं । सम्मान की कमी – जब रिश्तो में भावनाओं की , बात बे बात आहत कर रहे हैं तो साफ मतलब है कि हमारे संबंधों में एक दूसरे के प्रति सम्मान की कमी है सम्मान की कमी भी तभी आती है जब एक दूसरे के प्रति निरीह भाव रखकर असंवेदनशील हो उठते हैं ऐसे में जरूरी है कि हम संबंधों में सम्मान की भावनाएं रखें । समझौता स्वीकार नहीं – संबंधों में सामंजस्य हमेशा हम अपने बुजुर्गों से सुनते आए हैं लेकिन क्या संबंधों में हम सामंजस्य स्थापित कर पा रहे हैं अगर एक दूसरे के प्रति समझौते की स्थिति आती है तो सामंजस्य से तो दूर एक दूसरे की बात भी स्वीकार नहीं करते यही नहीं संबंधों में भावनाएं आहत हो वैसी बातों के गड़े मुर्दे उखाड़ने से भी गुरेज नहीं करते । सिनेमा और सीरियल से आया बोल्डनेस – यकीनन आज समाज में जो बोल्डनेस की स्थिति आई है उसमें सिनेमा की भूमिका महत्वपूर्ण है रिश्तो के विभिन्न दाँव – पेंच समाज में सिनेमा व सीरियल से ही आया है | डॉ निशा खन्ना के अनुसार लोग फिल्मों की काल्पनिक दुनिया को अपने जीवन में उतारने की कोशिश करने लगते हैं रिश्तो के उतार – चढ़ाव में आज सिनेमा की घुसपैठ ही है ।
क्या करें –
* सबसे पहले एक दूसरे के प्रति सम्मान की भावना रखें यह आपके रिश्ते को कमजोर नहीं पड़ने देगा । * याद रखें विचारों में खुलापन विकास के लिहाज से सही है लेकिन रिश्तों की मर्यादा के लिए यह तर्कसंगत नहीं है । * व्यावहारिक बनिए लेकिन इतना नहीं कि रिश्तो से भावनाएं काफूर हो जाए ।
* एक दूसरे की पसंद ना पसंद के अनुसार स्वयं को बदलने की कोशिश करें ये आपके रिश्ते को मजबूत करेगा । * काल्पनिक दुनिया को अपने जीवन में उतारने के चक्कर में अपने रिश्तो की गरिमा को भंग ना करें याद रखें अगर रिश्तो में भावनाओं को जीवित रखना है तो उसकी अहमियत भी समझनी होगी।
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