कन्यादान – हिंदू धर्म का भावुक संस्कार
हिंदू धर्म में विवाह को 16 संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है , पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लिए जाते हैं और दो तन – मन और आत्मा विवाह के इस पवित्र बंधन में बंध जाते हैं भारत की पुरातन परंपरा में शादी कोई एक – दो दिन का उत्सव नहीं बल्कि सात जन्मों के पवित्र बंधन का नाम है । वेदों और पुराणों में विवाह में वर को भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है वहीं वधु को घर की लक्ष्मी और अन्नपूर्णा का दर्जा दिया जाता है । हिंदू धर्म में शादी में होने वाली हर रस्म और रीति- रिवाज का काफी महत्व होता है, शादी में होने वाली रस्मो का कहीं ना कहीं भावात्मक जुड़ाव होता है शादी में जहां दो अलग -अलग परिवार एक साथ एक बंधन में बंधे हैं वही दो आत्माओं का भी मिलन होता है ऐसे ही यह कन्यादान रस्म पिता और पुत्री के बीच एक भावनात्मक रस्म में है इसको निभाते हुए पिता और पुत्री पर क्या बीतती है यह कोई उनके दिल से पूछे , इस एक रस्म से पुत्री हमेशा के लिए पराई हो जाती है ।
कन्यादान रस्म – हिंदू धर्म में कन्यादान के समय कुछ अंशदान देने की प्रथा है इसमें आटे की लोई में छिपाकर कुछ धन कन्यादान के समय दिया जाता है हकीकत में बस यही और इतना ही दहेज का स्वरूप है इसके साथ ही दुल्हन को उसके माता- पिता जो सामान और धन उपहार के रूप में देते हैं वह सिर्फ इसलिए कि वह उसके समय पर पुत्री के काम आ सके लेकिन यह भी गुप्त ही होता है इस संबंध में ससुराल वालों और मायके वालों को भी पूछने का अधिकार नहीं , साथ ही ना उसके प्रदर्शन की आवश्यकता है । इस कन्यादान के साथ कुछ अंश दान का विधान तो है पर दूरदर्शी ऋषियो ने लोगों की स्वार्थपरता की संभावना को ध्यान में रखते हुए इसे रखने का नियम बनाया था । कन्यादान का महत्व – हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार कन्यादान महादान की श्रेणी में आता है अर्थात इससे बड़ा दान कोई हो ही नहीं सकता , शास्त्रों में बताया गया है कि जब कन्या के पिता शास्त्रों में बताए गए विधि विधान के अनुसार कन्यादान की रस्म निभाते हैं तो कन्या के माता पिता और परिवार को भी सौभाग्य की प्राप्ति होती है इसके बाद वधू यानी लड़की के लिए मायका पराया घर हो जाता है और पति का घर यानी कि ससुराल उसका अपना घर हो जाता है ।