अपने सांसों की हिफाजत करें
अगर शरीर के प्रमुख अंगों की बात की जाए तो इस दृष्टि से फेफड़ों की अहमियत सबसे ज्यादा है क्योंकि इन्हीं की वजह से हम सांस ले पाते हैं । नाक और सांस की नलियों के साथ मिलकर यह शरीर के भीतर शुद्ध ऑक्सीजन पहुंचाने और कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालने का काम करते हैं भले ही यह शरीर के भीतर होते हैं पर प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर इन्हीं पर पड़ता है , चिंताजनक बात यह है कि मेडिकल साइंस के क्षेत्र में अभी कोई ऐसी तकनीक उपलब्ध नहीं है जिससे किडनी , लीवर या हार्ट की तरह लंग्स को भी ट्रांसप्लांट किया जा सके इसलिए हमें इनका विशेष ध्यान रखने की जरूरत होती है । कब होती है रुकावट – वातावरण में मौजूद वायरस और बैक्टीरिया की वजह से फेफड़े में संक्रमण और सूजन की समस्या होती है जिसे न्यूमोनिया कहा जाता है । सांस का बहुत तेज या धीरे चलना , सीने में घड़घड़ाहट की आवाज सुनाई देना , खांसी , बुखार आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं , छोटे बच्चों और बुजुर्गों का इम्यून सिस्टम बहुत कमजोर होता है इसलिए अक्सर उनमें यह समस्या देखने को मिलती है । प्रदूषण ,फेफड़ों का सबसे बड़ा दुश्मन है ज्यादा स्मोकिंग करने वाले लोगों के फेफड़े और सांस की नलियों में नुकसानदेह केमिकल्स का जमाव होने लगता है । आमतौर पर सांस की नली भीतर से हल्की गीली होती हैं लेकिन धुआं , धूल और हवा में मौजूद प्रदूषण की वजह से इनके भीतर मौजूद लुब्रीकेंट सूखकर सांस की नलिओं की भीतरी दीवारों से चिपक जाता है इससे व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ होती है । 40 वर्ष की आयु के बाद लोगों को यह समस्या ज्यादा परेशान करती है क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ जाती है, बदलते मौसम में हानिकारक बैक्टीरिया ज्यादा सक्रिय होते हैं और उनसे लड़ने के लिए इम्यून सिस्टम को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है इसलिए कुछ लोगों को इस दौरान भी सांस लेने में परेशानी होती है । ज्यादा गंभीर स्थिति में ब्रेन तक ऑक्सीजन पहुंचने के रास्ते में भी रुकावट आती है तो ऐसी अवस्था सीपीओडी यानी क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पलमोनरी डिजीज कहा जाता है ऐसी स्थिति में मरीज को नेबुलाइजर द्वारा दवा देने की जरूरत होती है और डॉक्टर ,पल्स ऑक्सीमीटर द्वारा यह जानते हैं कि ब्रेन को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिल रही है या नही। अगर ब्रेन में ऑक्सीजन सैचुरेशन 9 प्रतिशत से कम हो तो व्यक्ति को अलग से ऑक्सीजन देने की जरूरत होती है ऐसे हालात में उसे कुछ समय के लिए हॉस्पिटल में एडमिट कराने की नौबत आ सकती है | कुछ विशेष परिस्थितियों में सीओपीडी के गंभीर मरीजों के लिए घर पर ही पल्स ऑक्सीमीटर , ऑक्सीजन सिलेंडर कंसंट्रेटर रखने की जरूरत पड़ती है उन उपकरणों का इस्तेमाल बहुत आसान होता है और इनकी मदद से मरीज के लिए सांस लेने की प्रक्रिया आसान हो जाती है । उपचार से बेहतर बचाव – अगर आप खुद को सीओपीडी न्यूमोनिया और टीबी जैसे गंभीर बीमारियों से बचाना चाहते हैं तो स्मोकिंग से दूर रहें मॉर्निंग वॉक के लिए मास्क पहनकर जाएं , कार का शीशा हमेशा बंद रखें , बच्चों को इंफेक्शन से बचाने के लिए घर में साफ सफाई का पूरा ध्यान रखें वैसे आजकल चेस्ट की फिजियोथैरेपी और ब्रीडिंग एक्सरसाइज से भी राहत मिलती है अनुलोम – विलोम की क्रिया भी फेफड़ों को स्वस्थ बनाए रखने में मददगार है इसके बावजूद अगर सांस लेने में तकलीफ हो तो बिना देर किए डॉक्टर से सलाह लें । अपनाए स्वस्थ खानपान – फेफड़ों को स्वस्थ और मजबूत बनाए रखने के लिए हेल्दी डाइट अपनाना बेहद जरूरी है | फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए एंटी ऑक्सीडेंट तत्वों से भरपूर रंग – बिरंगे फलों और हरी पत्तेदार सब्जियों का पर्याप्त मात्रा में सेवन करें विटामिन सी युक्त खट्टे फल भी इम्यून सिस्टम की सक्रियता बढ़ाकर फेफड़ों को मजबूती प्रदान करते हैं । इसके अलावा हमारी किचन में रोजाना इस्तेमाल होने वाली सब्जियों , फलों और मसाले में कई ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं जो फेफड़ों के लिए बेहद फायदेमंद साबित होते हैं आइए जानते हैं कुछ ऐसे ही तत्वों के बारे में – कैरोटिनॉयड – यह एक ऐसा एंटीऑक्सीडेंट तत्व है जो व्यक्ति को अस्थमा और लंग कैंसर के खतरे से बचाता है | फेफड़े में मौजूद विषैले तत्वों को बाहर निकालने का काम करता है अगर नियमित रूप से गाजर , ब्रोकली , शकरकंद , टमाटर और पालक जैसी हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन किया जाए तो इस तत्वों की पूर्ति आसानी से हो जाती है । विटामिन सी – विटामिन सी से भरपूर खट्टे फलों में पर्याप्त मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट तत्व होते हैं जो सांस लेते समय शरीर के अन्य हिस्सों तक ऑक्सीजन पहुंचाने में मदद करते हैं इसके लिए संतरा , नींबू , टमाटर , स्ट्रॉबेरी , अंगूर अनानास आदि जैसे फलों को अपने भोजन में प्रमुखता से शामिल करें । विटामिन सी की अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर जाएँ https://www.palakwomensinformation.com/2021/04/vitamin-c-paane-ke-simple-strot.html फोलेट युक्त खाद्य पदार्थ – हमारा शरीर भोजन से मिलने वाले पोषक तत्व फोलिक को फोलिक एसिड में तब्दील करता है जो इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाकर फेफड़ों की हिफाजत करता है | मसूर की दाल और हरी पत्तेदार सब्जियां फोलेट से भरपूर होती हैं इसलिए इन चीजों का नियमित रूप से सेवन करें । ओमेगा – 3 फैटी एसिड – यह केवल ब्रेन के लिए ही नहीं बल्कि फेफड़ों के लिए भी बहुत फायदेमंद साबित होता है इसके लिए मछली , ड्राइफ्रूट्स , अलसी को भोजन में प्रमुखता से शामिल करना चाहिए । एल्सिन – लहसुन में मौजूद एल्सिन नामक तत्व फेफड़ों की सूजन को घटाता है और इंफेक्शन से लड़ने में मददगार होता है। करक्यूमिन – हल्दी में मौजूद करक्यूमिन नामक तत्व फेफड़ों को मजबूत बनाता है और अस्थमा के मरीजों को भी राहत देता है | अंत में पर्याप्त मात्रा में पानी पीने की आदत डालें इससे शरीर का रक्त संचार दुरुस्त रहता है और यह फेफड़ों के नुकसानदेह तत्वों को बाहर निकालने में भी मददगार होता है | इस प्रकार अगर आसान शब्दों में कहा जाए तो फेफड़े हमारे शरीर के लिए एयर फिल्टर का काम करते हैं इनमें होने वाली मामूली से खराबी से भी स्वसन तंत्र से जुड़ी कई गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं इसलिए अच्छी सेहत के लिए फेफड़ों का विशेष ध्यान रखना चाहिए ।
बहुत अच्छी जानकारी
Thanks di for such an informative post
Very good article
very informative mam