मोबाइल फोन के साइड इफेक्ट्स

आज  की  युवा  पीढ़ी  मोबाइल  फोन  की  इतनी  गुलाम  हो  चुकी  है  कि  इसे  अगर  लाइफस्टाइल  एडिक्शन  कहा  जाए  तो  कुछ  गलत  ना  होगा  लेकिन  इस  मोबाइल  एडिक्शन  का  हमारी  सेहत , रिश्तो  और  जीवन  पर  भी  बुरा  प्रभाव  पड़  रहा  है ।                                     यह  सही  है  कि  एक  दूसरे  से  कनेक्ट  रहने  के  लिए  मोबाइल  फोन  इस  समय  हमारी  सबसे  बड़ी  जरूरत  बन  गया  है  पर  इसका  मतलब  यह  भी  नहीं  कि  वह  हमारी  जिंदगी  पर  इस  कदर  हावी  हो  जाए  कि  सेहत  पर  इसका  प्रतिकूल  प्रभाव  पड़ने  लगे |                              सेल्फ  स्टीम  की  कमी – स्पेन  में  यूनिवर्सिटी  ऑफ  ग्रेनाडा  में  हुए  अध्ययनों  के  अनुसार  –     * अधिकांश  मोबाइल  एडिक्ट्स  की  सेल्फ  स्टीम  काफी  कम  होती  है |  एक  ओर  जहां  उन्हें  सोशल  रिलेशन  विकसित  करने  में  परेशानी  होती  है  वहीं  दूसरी  और  लोगों  से  हमेशा  कनेक्ट  रहने  की  उनके  अंदर  एक  तीव्र  इच्छा  बनी  रहती  है ।                                                             * यदि  व्यक्ति  कुछ  समय  के  लिए  भी  मोबाइल  से  दूर  रहे  तो  वह  हताश , चिड़चिड़ा  और  डिप्रेशन  का  शिकार  हो  जाता  है  इसलिए  मोबाइल  एडिक्ट  लोग  फोन  को  हमेशा  अपने  पास  रखते  हैं ।                                                                                                                             * उसके  लिए  किसी  भी  काम  में  पूरी  तरह  से  ध्यान  लगाना  मुश्किल  होता  है  यदि  वह  किसी  काम  में  व्यस्त  भी  रहते  हैं  तो  किसी  ना  किसी  बहाने  से  उनकी  उंगलियां  फोन  पर  ही  चलती  रहती  हैं ।                                                                                                                      * यही  नहीं  मोबाइल  एडिक्ट हमेशा  तकनीकी  जानकारी  रखते  हैं  और  इसलिए  अपना  हैंडसेट  बदलते  रहते  हैं  इस  वजह  से  उनका  पढ़ाई  या  अन्य  गतिविधियों  में  मन  नहीं  लगता  और  मोबाइल  ही  उनकी  प्राथमिकता  बन  जाती  है ।                                                               * जिन  लोगों  में  सेल्फ  एस्टीम  की  कमी  होती  है  वह  मोबाइल  को  स्टेटस  सिंबल  मानकर  लोगों  के  बीच  आकर्षण  का  केंद्र  बनने  की  कोशिश  करते  हैं ।                                                           मनोवैज्ञानिक  प्रभाव –   * मनोवैज्ञानिक  चिकित्सक  डॉक्टर  पटेल  मानती  हैं  कि  जो  टीनएजर्स  1  दिन  में  कई  घंटे  तक  मोबाइल  फोन  का  प्रयोग  करते  हैं , बातें  करते  हैं , मैसेज  भेजते  हैं , मिस  कॉल  करते  हैं  उनमें  कुछ  साइकोलॉजिकल  डिसऑर्डर  विकसित  हो  जाते  हैं  |                   * लेकिन  यह  मनोवैज्ञानिक  प्रभाव  शारीरिक  तौर  पर  एकदम  नजर  नहीं  आते  इसलिए  उन  पर  ध्यान  नहीं  दिया  जाता  है ।                                                                                        *   कमरे  में  बंद  वे  घंटों  फोन  पर  बतियाते  रहते  हैं  इसके  माध्यम  से  होने  वाले  एक्सपोजर  उनकी  सोच  पर  भी  असर  करते  हैं  बिना  सोचे  समझे  वह  जो  चाहे  मैसेज  भेज  अपने  दिल  की  भड़ास  निकाल  देते  हैं  उस  वक्त  वह  यह  नहीं  सोचते  कि  पढ़ने  वाले   पर  इसका  क्या  असर  होगा ।                                                                                           * यदि  टीनएजर्स  के  मैसेज  या  मिस  कॉल  का  जवाब  नहीं  दिया  जाता  है  तो  भी  वे  परेशान  हो  जाते  हैं  और  इसका  असर  उनकी  पूरी  पर्सनैलिटी  व  कंसंट्रेशन  पर  पड़ता  है ।                                  इन  बातों  का  रखें  ख्यालमोबाइल  फोन  का  इस्तेमाल  करना  कोई  बुरी  बात  नहीं  है  लेकिन  उस  पर  जरूरत  से  ज्यादा  निर्भरता  व्यक्ति  के  अंदर  खालीपन , क्रोध  जैसी  भावनात्मक  अवस्थाओं  की  बढ़ोतरी  करता  है  | मोबाइल  फोन  के  दुष्प्रभाव  से  बचने  के  लिए  जरूरी  है  कि  कुछ  छोटी – छोटी  बातों  का  भी  ख्याल  रखा  जाए  जैसे –                                                                        * मोबाइल  को  वाइब्रेशन  मोड  में  ना  रखें  ।                                             * रात  को  सोते  समय  या  दिन  में  भी  मोबाइल  को  सिर  के  पास  ना  रखें ।                                                           * मोबाइल  फोन  पर  अधिक  देर  तक  बात  ना  करें ।                                  कुछ समय  पहले  वैज्ञानिकों  ने  चौंकाने  वाले  तथ्य  पेश  किए  थे  जिसके  अनुसार  मोबाइल  फोन  बच्चों  के  लिए बहुत  हानिकारक  है |  ब्रिटेन  की  एजेंसी  नेशनल  रेडियोलॉजिकल  प्रोटेक्शन  बोर्ड  ने  चेतावनी  दी  थी  कि  बच्चों  को  मोबाइल  फोन  से  होने  वाले  हानिकारक  प्रभावों  से  बचाना  जरूरी  है । दिल्ली  की  जवाहरलाल  नेहरू  यूनिवर्सिटी  में  हुए  एक  अध्ययन  के  अनुसार  अधिक  समय  तक  मोबाइल  फोन  को  कान  पर  लगाए  रहने  से  उससे  निकलने  वाली  विद्युत  चुंबकीय  तरंगे  मस्तिष्क  के  टिशूज  पर  असर  डालते  हैं |  रिपोर्ट  में  सलाह  दी  गई  है  कि  16  वर्ष  से  कम  आयु  के  बच्चों  को  मोबाइल  फोन  प्रयोग  न  करने  देना  या  कम  से  कम  देना  ही  बेहतर  होगा ।      
      मोबाइल  फोन  जरूरत  बनने  के  साथ  ही  लोगों  की आदत  व  जिंदगी  में  शामिल  हो  गया  है |  उसके  फोन  नंबर , क्रेडिट  कार्ड , पिन  नंबर , पैन  नंबर  तक  उसमें  दर्ज  होते  हैं  और  उसे  खोने  का  अर्थ  होता  है  अपनी  जिंदगी  का  एक  अहम  हिस्सा  गवाँ  देना |  बात  करते – करते  अचानक  बैटरी  का  खत्म  हो  जाना  और  उसके  बाद  सारे  दिन  बेचैन  रहना  या  उसे  चार्ज  करने  की  कोशिश  में  लगे  रहना  बहुत  देर  तक  घंटी  ना  बजे  तो  बार  बार  फोन  उठाकर  चेक  करना  कि  कहीं  वह  स्विच  ऑफ  तो  नहीं  हो  गया  है  बैठे – बैठे  कई  बार  ही  आभास  होना  की  घंटी  बज  रही  है  पर  वास्तव  में  ऐसा  होता  नहीं  है  इसी  को  नोमोफोबिया  कहा  जाता  है |  मोबाइल  फोन  पर  बात  ना  कर  पाने  का  यह  फोबिया  प्लेग  बीमारी  की  तरह  फैल  रहा  है |  हम  इस  पर  इतने  निर्भर  हो  गए  हैं  कि  किसी  वजह  से  फ़ोन  पास  न  होने  पर  बहुत  ज्यादा  तनावग्रस्त  हो  जाते  हैं ।    मोबाइल  फोन  के  जरिए  लोगों  से  जुड़ना   कोई   बुरी  बात  नहीं  है  परंतु  अति  हर  चीज  की  बुरी  होती  है  इसलिए   इन  सभी  पहलुओं  को  ध्यान  में  रखते  हुए  मोबाइल  फोन  का  इस्तेमाल  करना  चाहिए ।                                       

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