परवरिश की सामग्री – स्नेह व अनुशासित आजादी

बच्चों की परवरिश को लेकर लगभग सभी इस दौर से गुजरते हैं और सभी यह सोचते हैं की परवरिश की सामग्री क्या हो , जिससे उनका बच्चा अपने लिए , अपने माता- पिता के लिए , रिश्तेदार ,समाज और सबसे अधिक स्कूल के लिए एक आदर्श बच्चा बने , सब उसको प्यार करें , सब उसकी तारीफ करें मगर ऐसा होता नहीं है कुछ बच्चे अच्छे होते हैं, और कुछ बच्चे इतने अच्छे नहीं होते , ऐसे में उन्हें घर में बेहतर वातावरण मिलता है , उनकी हर मांग पूरी की जाती है लेकिन वह आप आपकी और स्कूल की उम्मीदों पर उतने खरे नहीं उतरते , तब यह बात आती है पालन- पोषण की व परवरिश की सामग्री की , यहीं पर यह सवाल भी उठता है कि आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरने और उसकी शारीरिक तथा मानसिक रूप से कमजोर होने के पीछे कहीं आप की परवरिश की सामग्री जिम्मेदार तो नहीं है ।
आज बच्चों के लिए स्कूल , किताबें ,ऑनलाइन शिक्षा , सोशल मीडिया , यूट्यूब सभी मौजूद है फिर भी माता- पिता परेशान रहते हैं ऐसे में कमी कहां रह गई और हम कहां चूक गए कि उनका बच्चा एक आदर्श बच्चा नहीं बन पा रहा ।
हर माता -पिता अपने बच्चों के लिए अच्छा ही करते हैं , पहले भी करते थे लेकिन आज तो हम सभी जरूरत से अधिक ही हैं . जितनी जागरूकता आज है पहले नहीं थी बल्कि हम हर चीज के लिए अपने बच्चों के लिए सुन कर और किताबें पढ़ – पढ़ कर सब कुछ एक ही बार में एक साथ करते हैं ।
पेरेंटिंग का कोई एक फार्मूला नहीं है , कोई एक उपाय या रास्ता नहीं बल्कि कई बातें और कई सिद्धांत है जिन्हें हर बच्चे पर एक समान लागू नहीं किया जा सकता ,बेहतर तो यह होगा कि आप अपने बच्चे के हिसाब से पेरेंटिंग अपनाए ।
परंतु परिवेश की सामग्रियों में कुछ मूल सामग्री ऐसी होती है जो सभी बच्चों पर लागू होती है जैसे कि – बच्चो को सहज रूप से बढ़ने दें – आप बच्चों को अधिक से अधिक समय दें , इसमें माता- पिता कायदे – कानून, अनुशासन , संचार , संवाद सबका ध्यान रखते हुए अपना व्यवहार उसके सामने रखें , जिससे उस पर सकारात्मक प्रभाव पड़े , फलस्वरूप बच्चों में आत्म नियंत्रण मुखरता , नैतिक , तर्क – विवेक और बाल क्षमताएं विकसित होते हैं । अधिक स्नेह दे – बच्चों को अधिक स्नेह दें , जिससे उनके दिमाग में यह रहे कि वह अपनी कोई भी बात स्वतंत्रता पूर्वक आपसे बता सकें और उन्हें यह महसूस हो कि उनको आप समझते हैं । अनुशासित आजादी दें – बदलते परिवेश रहन -सहन और कार्यशैली और जीवन शैली के साथ समन्वय बनाते हुए अनुशासन में रखना , बच्चे के निर्णय को ध्यान में रखकर अपना कोई भी फैसला लेना , बच्चे के अंदर गुस्सा , अवसाद उत्पन्न होने का खतरा होता है । पेरेंटिंग में माता- पिता अभी बच्चा है , यह सोचकर सारी गलतियां माफ कर देते हैं इसमें बच्चे के अनुशासनहीन , कामचोर बन जाने का खतरा होता है , मेरे हिसाब से आजादी अनुशासित और संवाद दोनों तरफ से होना चाहिए इनाम और सजा का सिद्धांत भी एक अच्छे व्यक्तित्व और भविष्य के निर्माण में सहायक होते हैं । यानी कुछ लचीले हो जाए , कभी सख्त हो जाए , कभी अपनी बात माने में तो कभी बच्चे की बात माने , सच कहा जाए तो अच्छी परवरिश वह है जिसमें बच्चे को बड़े होकर किसी तरह के सहारे की जरूरत ना पड़े , सहारे से मतलब स्वतंत्र रूप से सोचने , खाने-पीने और अपनी बात रखने और निर्णय लेने से है जिसमें अपनी पसंद – नापसंद , तर्क और बेहतर इंसान बनने की सारी संभावनाएं हो ।

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