दशहरा- विजय पर्व का मर्म ?

नवरात्र  के  9  दिन  और  दसवां  दिन  जिसे   दशहरा के  नाम  से  जाना  जाता  है  यह  पूरे  दिन  व्यक्तित्व के  आयाम  होते  हैं  , हमारे  भीतर  बहुत  सी  शक्तियां समाहित  हैं  – भौतिक  शक्ति ,  मानसिक  शक्ति , शारीरिक  और  वैचारिक  शक्ति ,  लेकिन  सब  की  सब  सोई  हुई  है  उन्हें  जगाने  का  संकल्प  है  दशहरा ।                                                                                          दशहरे   में  हम  रावण  का  पुतला  जलाते आ  रहे  हैं  मगर  इसे  सिर्फ  परंपरा  ना  माने  इसके पीछे  छिपे मर्म  को  भी  समझे   ,  ठीक  है  हम परंपराओं  का  निर्वहन  करते  हैं  मगर  उनसे  कुछ सीखना  भी  तो  चाहिए  , समाज  से  बुराई  का  अंत हो  इसके  लिए  जरूरी  है  कि  मां  अपने  बच्चों  की विचारधारा  पवित्र  रखें  , बच्चों   के  मन  में  किसी  भी  तरह  की  विसंगति  फैलाने  वाले  विचार  ही  ना आ  पाए ।  इसके  लिए  और  गुरु  का  सानिध्य  और आत्म  चिंतन  बहुत  प्रभावी  साबित  होगा ।                                      अच्छाई  है , तभी  बुराई  की  पहचान है , सफेद  है,  तो  काले  का  अस्तित्व  है ,  यानी  समाज  से  बुराई  पूरी  तरह   नहीं  जा  सकती,   हां  इसका  पैमाना  जरूर  कम  हो  सकता  है  । ,                                  जीवन  में  बुराइयां  है  तो अच्छाइयां  भी  हैं  , लेकिन  एक  बात  यह  भी  है  कि हम  जीवन  को  जैसा  देखना  चाहते  हैं  वैसा  ही  हो जाता  है  ,  जीवन  तो  वैसा  ही  होता  है  जैसी  देखने की  हमारे  पास  दृष्टि  होती  है  , हमारी  दृष्टि  कैसी  है जिंदगी  तो  उससे  ही  निखरती  है ।                                                 हम  चीज  कामों  में  ही  चुनते  हैं  कि यह  काम  बुरा  है   , इसे  छोड़  दें ,  यह  काम  भला है , इसे  कर  ले ,  अक्सर  काम  पर  ही  हमारा  जोर होता  है , परन्तु  कर्मों  के  पीछे  छुपा  हुआ  हमारा स्वभाव  है  उस  पर  हम  कोई  विचार  नहीं  करते । ,अच्छाई  को  लेकर  हम  इतने  सशंकित  रहते  हैं  कि उसे  अपने  बूते  से  बाहर  की  चीज  मानने  लगते  है  ।  इसके  विपरीत  अच्छाई  को  जिंदगी  तक  लाने  में अच्छी  खासी  मेहनत  करनी  पड़ती  है  ,                                           बड़े  बुजुर्ग  कहते  हैं –  दुख  पर ध्यान  दोगे  तो  हमेशा  दुखी  रहोगे ,  सुख  पर  ध्यान देना  शुरू  करो ,  दरअसल  तुम  जिस  पर  ध्यान  देते हो  वह  चीज  सक्रिय  हो  जाती  है  ।    और  यह हमेशा  याद  रखना  चाहिए  कि  जहां  कांटे  लगते  हैं वहीं   फूल  के  पैदा  होने  की  संभावना  भी  होती  है ।                              you may like also –     1-   https://palakwomensinformation.com/%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%af%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%b2%e0%a4%be/      2-      https://palakwomensinformation.com/%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%af%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a5%8b-%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a4%a8%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%95%e0%a4%b2%e0%a4%be/                                                    इसलिए  दशहरा को  छुट्टी  का दिन  ना  माने  अधिकांश  लोग  रावण  का  पुतला जलात  का  फर्ज  निभाते  हैं  , बहुत  कम  समझते  हैं कि  विजय पर्व  के  मर्म  को  , परंपरा  निभाई  चाहिए लेकिन  उसके  पीछे के मर्म   को  भी  समझना  चाहिए,   ।            हम  सब  अच्छा  सोचे  और  हमारे  कर्म  भी  ऐसे  हो  जाए  तो  काफी  हद  तक  बुराई शून्य  हो  जाएगी ।  समाज  से  बुराई  का  स्तर  कम हो  इसके  लिए  नारी  शक्ति  को  आगे  आना  होगा वह  बच्चों  में  अच्छे   संस्कार  डालें  और  किसी  भी तरह  से  बुराई  की  विचारधारा  को  पनपने ना दे तो   समाज  खुशहाली  से  सुगंधित  हो  जाएगा ।

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