अंधविश्वास – स्वयं परखे फिर विश्वास करें
प्रकृति के रहस्य मनुष्य के लिए हमेशा से , अनसुलझे रहस्य को जानना समझना चाहते हैं लेकिन विज्ञान की इतनी प्रगति के बावजूद यह आसान नहीं है । मनुष्य के समझ से परे कई पारलौकिक बातें सामने आ जाती हैं इन्हीं के किस्से कहानियां बनाकर लोगों की समस्याओं को दूर करने उनकी मनोकामना को पूरा करने की ठग विद्या शुरू हो जाती है और यहीं से शुरू होता है अंधविश्वास । अंधविश्वास एक ऐसा विश्वास है जिसका कोई उचित कारण नहीं होता है एक छोटा बच्चा अपने घर परिवार और समाज में जिन परंपराओं व मान्यताओं को बचपन से देखता है व सुनता आ रहा होता है वह भी उन्हीं की तरह अक्षरशः पालन करने लगता है । यह अंधविश्वास उसके मन मस्तिष्क में इतना गहरा असर छोड़ देता है कि वह जीवन भर उससे बाहर नहीं आ पाता , अंधविश्वास कमजोर व्यक्तित्व एवं कमजोर मानसिकता के लोगों में देखने को मिलता है और इसका सबसे ज्यादा प्रभाव महिलाओं में दिखता है । कहीं दिखावे का स्वांग , कहीं डर से , कहीं श्रद्धा तो कहीं लकीर की फकीरी कुल मिलाकर यही हैं हम , हमारा समाज जहां धर्मांधता के कारण पंडित , पुजारियों व प्रयोग पुरोहितों के द्वारा लोगों के दिमाग पर शुभ अशुभ का ऐसा वहम भर दिया है कि उनके भीतर सही गलत का फर्क करने की क्षमता ही नहीं रह गई है । जमीर को ताक पर रखते तो जीवन में और क्या चाहिए ? यह सब इसी मंतव्य को मानने वाले बन जाते हैं | भ्रष्ट बड़े – बड़े नेता टैक्स की चोरी करने वाली बड़ी – बड़ी फिल्मी हस्तियां बड़ी शान से अपने लाव लश्कर के साथ वह भी मीडिया की चकाचौंध के साथ मंदिरों में देवी देवताओं के दर्शन भारी दान चैरिटी कर अपने आप को धार्मिक पवित्र व नेक दिखाने का ढोंग करते हैं क्या यह आंख खोलने के लिए पर्याप्त नहीं है । तुलसीदास के अनुसार , ” भय बिन होय न प्रीत ” अर्थात यह इंसान को कार्य करने के लिए उकसाने का सर्वोत्तम माध्यम है कुछ सीमा तक भय कार्य उद्दीपक एवं प्रेरणा का काम करता है जो इंसान की प्रगति में सहायक बनता है मगर वही जब भय की अधिकता हो जाती है तो भय को स्वार्थ सिद्धि का साधन बना कर लोगों की भावनाओं से खेला जाता है तो यह अंधविश्वास का रूप ले लेता है । हमारा भारतीय समाज इसी भय की अधिकता के कारण 21वीं सदी में भी 18वीं सदी की विचारधारा से ओतप्रोत है जहां चीन , जापान , जर्मनी जैसे देश निरंतर प्रगति कर महाशक्ति बन बैठे हैं वही भारत पाखंडवाद , अंधविश्वास के चलते लगातार पीछे होता जा रहा है । भारत में अंधविश्वास के अच्छे बुरे रूपों की जानकारी के लिए इस लिंक पर जाएं – https://hi.wikipedia.org/wiki/ अंधविश्वास के कारण – ( भगवान का भय ) ग्रामीण इलाकों में आज भी लोग लोहे की गर्म सलाखों से दबाकर कई बीमारों का उपचार करा रहे हैं वही बारहसिंघा से लोगों के शरीरों से रक्त निकालकर बाबा लोग नकारात्मक उर्जा को बाहर लाने का दावा करते हैं ।
हैरानी होती है कि जय गुरुदेव और कृपालु बाबा के मंदिरों में लोट लगाने वाले निर्मल बाबा , आसाराम और सत्य साईं की जय बोलने वाले राधे मां और राम रहीम के साथ अश्लीलता की हद तक घूमने वाले शिक्षित भक्त इन बाबाओं की पृष्ठभूमि और काले कारनामे जानने का प्रयास क्यों नहीं करते । किसी देश की उन्नति अंधविश्वासों के सहारे नहीं होती उसके लिए कर्मठता की जरूरत पड़ती है अमीर देशों में भी अंधविश्वासी है पर वहां अंधविश्वास विरोधियों , तार्किकों व वैज्ञानिकों की संख्या भी काफी है जो समाज को निरंतर आगे ले जाते रहते हैं भारत में तो कण – कण में दकियानूसी घुसा है । हम समय का सदुपयोग ना कर निरर्थक कार्यों ढकोसलों में व्यस्त रह कर यह अनमोल जीवन व्यर्थ में गवातें हैं | अंधविश्वासों से घिरकर पूर्णतया प्रसन्न भी नहीं रह पाते इसलिए शिक्षा के साथ – साथ जन – जन को अपनी बुद्धि के बंद दरवाजे खोल कर सबसे पहले ज्ञान का प्रकाश अपने भीतर फैलाना चाहिए और अंधविश्वासों को स्वयं परखें फिर विश्वास करें ।
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