दिल की जुबान – भावनाएं

 जिंदगी  में  कई  बार  ऐसे  मौके  आते  हैं  जब  दिल  और दिमाग  में  एक  जंग  सी  छिड़  जाती  है , दोनों  ही  अपना – अपना  तर्क  देते  हैं  लेकिन  समझ  नहीं  आता  कि  दिल  की  सुने  या  दिमाग  की , तब  लोग  कहते  हैं  कि  हमें  दिल  की  आवाज  सुननी  चाहिए  क्योंकि  दिल  हमेशा  सही  होता  है  । क्या  सचमुच  दिल  की  जुबान  होती  है ?                                                                                   दिल  और  दिमाग  दोनों  अलग – अलग  होते  हैं   हमारे  शरीर  में  दो  विचार  होते  हैं  एक  दिल  के ,और  एक  दिमाग  के  , दिल  कुछ  और  कहता  है  और  दिमाग  कुछ  और।  हमारा  दिल  भावनाओं  पर  आधारित  होता  है  जबकि  दिमाग  एक टेक्निकल  इंस्ट्रूमेंट  की  तरह  काम  करता  है  ,दिमाग  किसी  भी  मामले  में  सही  या  गलत  होता  है  ,जबकि  दिल भावनाओं  से  जुड़ा  होने  के  कारण  सिर्फ  सही  या  गलत  का  फैसला  नहीं  देता  बल्कि  कई  बार  कुछ  और  ही  फैसले  लेता  है  जिसके  लिए  हमारा  दिमाग  कभी  सहमति  नहीं  देता ।                                                                                                  अक्सर  दिल  की  बातों  को  होंठो  पर  लाना  आसान  नहीं  होता  ,हम  चाहते  हैं  कि  हमें  बोलना  भी  ना  पड़े  और  सामने  वाला  हमारे  दिल  की  जुबान  समझ  जाए , पर  क्या  यह  इतना आसान  है  आखिर  कैसे  ,समझे  दिल  की  जुबान  को –                                                   * चेहरा  दिल  का  आईना  होता  है  जो  भी  दिल  में  चलता  रहता  है  वह  चेहरे  पर  साफ  नजर  आ  जाता  है  चाहे , खुशी  हो  या  गम ।                                                           *  आंखें  भी  होती  है  दिल  की जुबान  ,चाहे  प्रेमी – प्रेमिका  हो  या  पति  – पत्नी  उन्हें  एक  दूसरे  की   भावनाओं  को  समझने  के  लिए  शब्दों  की  जरूरत  नहीं  होती , बिना  बोले  ही  वे  एक  दूसरे  की  भावनाओं  को  समझ  लेते  हैं ।                                                                             * हमारे  जज्बात  को  बयां  करने  में  आंसू  भी  बिन  बोले  ही  दिल  का  हाल  बयां  कर  देते  हैं ।              गौर  से  सुने  दिल  की  आवाज –  मुझे  लगता  है  कि  दिल  की  जुबान  जरूर  सुननी  चाहिए । मनोवैज्ञानिकों  का  मानना है  कि  दिमाग  जो  कहता  है  वह  दूसरों  के  लिए  ठीक  होता  है  लेकिन  जो  दिल  कहता  है  वह  हमारे  लिए  ठीक  होता  है ।                                                                कई  बार  तो  हम  जानबूझकर  दिल  की  जुबान  नहीं  सुनते  और  इसे  अनसुना  करने  के  कई  कारण  होते  हैं  जैसे  – डर , सामाजिक , बंधन , शर्म  इसकी ज्यादातर  शिकार  महिलाएं  होती  हैं । अपने  दिल  की  बात  खुलकर  न  कह  पाने  के  कारण  ज्यादातर  लोग  डिप्रेशन  के शिकार  हो  जाते  हैं  । मनुष्य  एक  भावनात्मक  प्राणी  है  इसलिए  वह  हमेशा  दिल  से  ही  सोचता  है  पर  दिल  कहीं  भावनाओं  में  बहकर  गलत  फैसला  ना  ले  ले  इसलिए  उस  पर  थोड़ा  प्रेक्टिकल  होने  का  दबाव  डालते  हैं  हम । अपने  दिल  की  जुबान  को  हमेशा  मुक्त  रखना  चाहिए  इससे  अपनों  का  प्यार  भी  बना  रहता  है  और  खुशनुमा  माहौल  भी  रहता  है ।  दिल  की  बात  जब  होठों  पर  नहीं  आ  पाती  तो  एक  घुटन  सी  महसूस  होने  लगती  है  और  मानसिक  समस्याएं  होने  लगती  हैं –                                                                                                           डिप्रेशन –  दिल  की  कसक  जब  जुबान  पर  नहीं  आ  पाती  तब  दिल  उदास  होने  लगता  है , उदास  दिल  धीरे – धीरे  डिप्रेशन  का  शिकार  हो  जाता  है  यह  किसी  भी  रिश्ते  में  हो  सकता  है । एक  तरफा  प्यार  में  चोट  खाए  लोग  अक्सर  डिप्रेशन  के  शिकार  हो  जाते  हैं  इसलिए  कहा  जाता  है  कि दिल  की  बात  खुल  कर  कह  दो ।                                                      चिंता –  किसी  ने  ठीक  ही  कहा  है  कि  चिंता , चिता  समान  होती  है  जब  हम  अपने  दिल  की  बात  किसी  से  खुलकर नहीं  कर  पाते  तो  रिश्तो  में  गलतफहमियां  जन्म  ले  ले  लेती  हैं  इनको  दूर  ना  कर  पाने  के  कारण  इंसान  चिंता  ग्रस्त  हो  जाता  है |  उपाय –  * दिल  की  बात  जुबान  पर  लाने  के  लिए  आप  किसी  काउंसलर  की  मदद  ले  सकते  हैं ।                                                                                                                * योगा , मेडिटेशन  के  जरिए  आप  अपने  अंतर्मन  में  झांक  कर  दिल  की  बात  सुन  सकते  हैं  और  उस  पर  कितना  अमल  करना  है  यह  तय  कर  सकते  हैं  ।                              * सुबह- सुबह  खुलकर  हंसने  से  किसी  भी  तरह  के  डिप्रेशन  व  चिंता  के  शिकार  होने  से  बच  सकते  हैं ।                                                                                                                      * घर  का  स्वतंत्र  हुआ  खुशनुमा  माहौल  खुलकर  जीने  के लिए  बहुत  जरूरी  है ।                       * हमारी  जिंदगी  में  कोई  न  कोई  एक  खास  दोस्त  होना  चाहिए  जिससे  हम  अपने  दिल  की  हर  बात  कह  सकें । साइकोथैरेपिस्ट  डॉक्टर  चित्रा  मुंशी  का  कहना  है  कि  जरूरी  है –                              इमोशनल  कंट्रोल –  हर  किसी  का  खुद  पर  इमोशनल  कंट्रोल  होना  बहुत  जरूरी  है , हमें  दिल  की  बात  जरूर  सुननी  चाहिए  लेकिन  कितना  बोलना  है  कितना  नहीं  यह  हमें  खुद  ही  तय  करना  चाहिए  जब  लोग  खुद  पर  इमोशनल  कंट्रोल  खो  देते  हैं  तब  उन्हें  जरूरत  होती  है  काउंसलर  की  जो  उन्हें  अपने  इमोशंस  पर  कंट्रोल  करना  सिखाते  हैं ।                                          आत्म  विश्लेषण  करें –  कई  बार  हम  भावनाओं  में  बहकर  कोई  कदम  उठा  लेते  हैं  लेकिन  जब  हम  आत्म विश्लेषण  करते  हैं  तो  हमें  एहसास  होता  है  कि  हमने  सही  नहीं  किया  ,तो  हम  उसे  सुधार  सकते  हैं । हर  रोज  रात  को  सोने  से  पहले  अपने  दिन  भर  की  घटनाओं  का विश्लेषण  जरूर  करना  चाहिए , इससे  ना  सिर्फ  हमें  एक तरह  की  आत्म  संतुष्टि  मिलती  है  बल्कि  रिश्तो  में  भी  कभी  दरार  नहीं  पड़ती ।                                                                     दिल  की  जुबान  होती  है  और  वह  ईश्वर  की आवाज  होती  है  जो  हमेशा  सही  होती  है  ,मुझे  लगता  है कि  जो  इंसान  दिल  की  आवाज  सुनता  है  वह  हमेशा  सुखी  रहता  है  पर  यह  भी  है  कि  आप  हमेशा  दिल  की  ही  नहीं  सुन  सकते  परिस्थितियों  के  अनुसार  हमें  दिमाग  की  भी  सुननी  चाहिए  क्योंकि  जीवन  में  प्रैक्टिकल  होना  भी  बहुत
जरूरी  है  कभी  दिल  की  सुनो , कभी  दिमाग  की  आखिर  यही  तो  जीवन  है ।

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